Thursday, March 25, 2021

शर्म आनी चाहिए जनता को

कोरोना की वर्तमान स्थिति भयावह है। जनता को चाहिए कि अपनी सुरक्षा के लिए सरकारी नियमों का पालन करे। बाज़ारों में भीड़ देखकर सरकार को घबराहट होती है। जनता होली जैसे अनावश्यक त्योहारों की आड़ लेकर समारोह करने की सोच रही है। लोग, होली मंगल मिलन जैसे बेहूदे कामों के लिये इकट्ठा हो रहे हैं। शर्म आनी चाहिए इस देश की जनता को। घर पर नहीं रह सकते?
सरकार को मजबूर होकर जनहित में सख्ती करनी पड़ती है। विवश होकर पुलिसवालों को कहना पड़ता है कि जो भी बिना मास्क दिखे उसको धर लो। और भी कुछ नहीं तो रिश्तेदारों के साथ ही होली खेलने चल दोगे! लज्जा नहीं आती? कोरोना से डर नहीं लगता? अरे मूर्खाे, अपनी नहीं तो औरों की जान की ही परवाह कर लो!
इस देश के महान राजनेता अपनी जान पर खेलकर लाखों लोगों की रैलियाँ कर रहे हैं ताकि लोकतंत्र बचा रह सके। कभी सोचा है कि कैसा लगता होगा जब दिल्ली में सोशल डिस्टेंस की सख्त नियमावली लागू करके बंगाल में लाखों लोगों की भीड़ के सामने मास्क हटाकर भाषण झाड़ना पड़ता है। कभी कल्पना की है कि अपनी आत्मा को क्या मुँह दिखाते होंगे बेचारे राजनेता!
महाराष्ट्र में लाखों केस आ गये, लेकिन हमारे राजनेता प्रदेश में गहराए राजनैतिक संकट से जूझने के लिए मंत्रालय, राजभवन, दिल्ली और प्रेस वार्ताओं में भागे फिर रहे हैं। कोरोना की जानलेवा दहशत को ताक पर रखकर, सरकारी गाइडलाइंस को धता बताकर भी कुर्सी की क़वायद में लगे हुए हैं। और तुम बस दो वक़्त की रोटी के लालच में धंधे-पानी पर निकल रहे हो। चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए ऐसी नाकारा जनता को।
क्या हो जाएगा अगर स्कूल नहीं खुलेंगे? क्या हो जाएगा अगर दफ़्तरों में काम नहीं होगा? क्या आफ़त आ जाएगी अगर लोग त्योहारों पर एक-दूसरे से नहीं मिलेंगे? कौन-सा पहाड़ टूट पड़ेगा अगर होली पर बिटिया के घर गुंजिया लेकर नहीं जा सकोगे? ...इन सब टुच्ची बातों की तुलना चुनाव की महत्ता से करते हो?
उधर किसान आफ़त मचाए हुए हैं। इतने साल से अपने खेतों से कमा रहे थे ना! तब कौन से ताजमहल बना लिए तुमने। तब भी तुम फाँसी लगा-लगाकर मर रहे थे। अब सरकार जो कर रही है, उसे करने दो। इतनी हाय-तौबा क्यों? आकर बैठ गए हो दिल्ली बॉर्डर पर। ...पड़े रहो। सरकार के पास क्या यही काम है कि तुम्हारा रोना सुनती रहे।
कभी बैठे हो सरकार में? कभी जाना है राजनीति किस चिड़िया का नाम है। सरकार के पास इन सब फालतू बातों के लिए वक़्त नहीं है, उसे चुनाव लड़ना है। चुनाव कोई हँसी-मज़ाक़ नहीं है। यह लोकतंत्र की आत्मा है। अब लोक के रोने-पीटने में लोकतंत्र को तो नहीं इग्नोर कर सकते ना! इसलिए ख़बरदार, अगर होली-वोली जैसे फालतू बहाने लेकर घर से बाहर क़दम निकाला तो!

© चिराग़ जैन

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