गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Friday, January 16, 2009
महत्व
तुमसे मिलना... ...जैसे हाई-वे पर दौड़ती गाड़ी दो पल को ठहरे किसी पैट्रोल पम्प पर।
...जैसे परवाज़ की ओर बढ़ता परिंदा यकायक उतर आए धरती पर पानी की चाह में।
...जैसे बहुत लंबी मरुथली यात्रा के दौरान हरे पेड़ की छाँव!
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