Wednesday, November 9, 2022

सीता की पाती राम के नाम

मुझको तो वन में रहने का काफी है अभ्यास सुनो 
लेकिन तुमने दे डाला है ख़ुद को कितना त्रास सुनो

तुमने त्याग दिया है मुझको, पर मुझमें बाक़ी हो तुम
मैं तुमको संग ले आई हूँ, कितने एकाकी हो तुम
मुझको बस वनवास दिया है, ख़ुद को कारावास सुनो
मुझको तो वन में रहने का काफी है अभ्यास सुनो

कैसे जनता सिंहासन की हर लाचारी समझेगी
दीवारें और छत भी कैसे बात तुम्हारी समझेंगी
थोड़ा दुःख ही साझा करती, रहती मैं यदि पास सुनो
लेकिन तुमने दे डाला है ख़ुद को कितना त्रास सुनो

पहले उससे रण करना था, जिसने हमको कष्ट दिया
अब उसका पालन करना है, जिसने सब सुख ध्वस्त किया
तब वल्कल में शर साधा, अब महलों में संन्यास सुनो
मुझको तो वन में रहने का काफी है अभ्यास सुनो

राजमुकुट ने कब-कब काटा, मैं समझूँ या तुम समझो
इस सौदे में कितना घाटा, मैं समझूँ या तुम समझो
आदर्शों की क्या क़ीमत है, मुझको है आभास सुनो
मुझको तो वन में रहने का काफी है अभ्यास सुनो

छोड़ चलूँ इस राजमहल को, ख़ुद से कहते तो होंगे
मुस्कानों के पीछे छिपकर, आँसू बहते तो होंगे
पर मर्यादा ही जीतेगी, है मुझको विश्वास सुनो
क्योंकि तुमने दे डाला है ख़ुद को इतना त्रास सुनो 

मेरी पीड़ा ले जाएगी मुझको माँ के आँचल तक
तुम जलता मन ले जाओगे इक दिन सरयू के जल तक
साँसों के उस पार मिलेगी हमको सुख की साँस सुनो 
क्योंकि तुमने दे डाला है ख़ुद को इतना त्रास सुनो 

✍️ चिराग़ जैन

No comments:

Post a Comment