Friday, November 4, 2022

कविता सुनने की तमीज़

शेर कहने का सलीक़ा तो ज़रूरी है मगर 
शेर सुनने के भी आदाब हुआ करते हैं 

कविता सुनने वाले अगर कविता की हर पंक्ति से प्रस्फुटित रश्मियों के पीछे दौड़कर अर्थ के असंख्य बिम्ब देख पाएं तो कविता-पाठ करने वाले को आनंद आ जाता है। कवि की भावभूमि का पर्यटन यदि श्रोता न कर पाए, तो कविता-पाठ नाद बनने की बजाय शोर बनकर रह जाता है। 
लेकिन बीते बुधवार अर्द्ध-चंद्र की संतुलित चांदनी में गुलाबी सर्दी की मीठी बयार के बीच, कविता के लिए सर्वाधिक उपयुक्त बैठक में सुनाने वालों को भी सुनने वालों से कम आनंद नहीं आया होगा। 
यूँ समझ लीजिए कि खेत से निकलकर फसल मंडी में बिकने की बजाय बीज बन रही थी। श्रोता दीर्घा में श्रीमती ममता कालिया, डॉ सरिता शर्मा, गुणवीर राणा,
श्लेष गौतम, सुदीप भोला, राजीव राज, निकुंज शर्मा, रामायण धर द्विवेदी, स्वयं श्रीवास्तव, ज्ञान प्रकाश आकुल, गौरव दुबे, शिखा दीप्ति, शंभू शिखर, रमेश मुस्कान, मध्यम सक्सेना, ओम निश्छल, कुमार संजाॅय सिंह, सुमित अवस्थी, अरुण महेश्वरी, विमल त्यागी, आयुष और अदिति सरीखे सावचेत मन विद्यमान हों। काव्यपाठ के लिए कबीरी तेवर के यश मालवीय जी हों, किशन सरोज सरीखी गीतता से युक्त विनोद श्रीवास्तव जी हों और ऑलपिन पर शहद लगाने का हुनर रखने वाले शायर इक़बाल अशहर हों। संचालन के माइक पर कविता तिवारी हों। व्यवस्था को चाक चौबंद रखने के लिए प्रवीन पाण्डेय जैसे कुशल व्यवस्थापक हों और इस पूरे वृत्त के निर्माण का केन्द्रबिन्दु डॉ कुमार विश्वास का सम्मोहक व्यक्तित्व हो तो ऊर्जा और आनंद के लिए वहाँ घटित होना स्वाभाविक था। 
इस महफ़िल में हर पंक्ति पर प्रतिक्रिया थी। आँसू को भी कविता बना लेने वाले ये श्रोता कभी दर्द में डूबी हुई किसी ग़ज़ल पर ठठाकर हँस पड़ते थे, तो कभी किसी आनंद की अभिव्यक्ति को सुनकर उस आनंद के पार्श्व में विराजित टीस पर त्राटक करने लगते थे। कभी मिसरा-ए-सानी की अदायगी से पहले ही किसी चुटकी से महफ़िल में ठहाका गूँज जाता था तो कभी किसी गीत-सूक्ति पर कोई दो श्रोता आँखों ही आँखों में हज़ारों बातें कर गुज़रते थे। लेकिन श्रोता दीर्घा की यह जीवंतता कविता-पाठ के लिए व्यवधान न होकर संगत बनी जाती थी।
बहुत दिन बाद ऐसे कविता सुनी, जैसे आज से एक दशक पहले मंच पर बैठकर हम और हमारे वरिष्ठ सुनते थे। जीवंतता और आनंद की कोई कमी नहीं होती थी, प्रत्युत्पन्नमति के अस्त्र से कविता पाठ कर रहे कवि के साथ थोड़ी छेड़छाड़ और शरारत भी हो जाती थी लेकिन इस सबसे काव्यपाठ में व्यवधान नहीं होता था। लोगों का मानना है कि उस दिन केवी कुटीर में अच्छा कवि होने की झलकी दिखाई गई, जबकि मुझे लगता है कि इस कार्यक्रम की श्रोतादीर्घा वाले कैमरे को मास्टर बनाकर एडिटिंग की जाए तो दुनिया समझ पाएगी कि- "देखो, ऐसे सुनी जाती है कविता!"

✍️ चिराग़ जैन 

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