पौराणिक सन्दर्भों से लेकर आज तक गुरुकुल और कविता ने सत्ता का निर्देशन किया है। चक्रवर्ती सम्राट चंद्रगुप्त हो या सिकंदर सरीखा विश्वविजेता; सभी ने गुरुकुल की तर्जनी का सम्मान किया है।
यह व्यवस्था इसलिए भी अपरिहार्य है कि सत्ता जनभावना से सीधे संपर्क में नहीं रह पाती। अवसरवादी चाटुकार सत्ता को भ्रमित करने में सदैव सक्रिय रहते हैं, ऐसे में कवि, ऋषि और कभी-कभी विदूषक; राजा से अभय प्राप्त करके राजा को जन-समस्याओं और अभिरुचियों से परिचित कराते हैं।
किन्तु वर्तमान समय में, प्रत्येक राजनैतिक दल ने कवियों और विचारकों को अपने इशारे पर चलाने का अभ्यास प्रारंभ कर दिया है।
कल राजस्थान के भवानीमंडी कवि सम्मेलन में एक पार्षद ने विनीत चौहान कवि को कविता-पाठ से इसलिए रोक दिया कि उनकी बातें कांग्रेस का राजनैतिक नुकसान कर रही थीं। ऐसा ही मामला राजस्थान के नौहर में छह महीने पहले भी घटा था, जहाँ गले में भगवा पटका डाले कुछ युवकों ने सुरेन्द्र शर्मा जी को इसलिए टोक दिया क्योंकि वे साम्प्रदायिक सद्भाव की बात कर रहे थे। उत्तर प्रदेश में पिछले वर्ष एक कार्यक्रम इसलिए रद्द करना पड़ा क्योंकि आयोजकों ने उसमें मुस्लिम कवियों को भी निमंत्रित किया था। एक व्यंग्यकार के साथ भी ऐसी घटनाएँ हुई हैं क्योंकि वे भाजपा की नीतियों पर कटाक्ष करते हैं!
कवि जन का प्रतिनिधि है। कवि समाज का हृदय और मस्तिष्क है, और राजनीति समाज का हाथ हैं जो शक्ति की तलवार से सज्ज है। यदि हृदय और मस्तिष्क हाथों को नियंत्रित न करें तो ये तलवार समाज को काट डालेगी। l
जो कवि इन दिनों किसी राजनैतिक दल के प्रचारक बनकर सत्ताओं का गुणगान करने में व्यस्त हैं, उन्हें समझना होगा कि कविता का कार्य सिंहासन को दर्पण दिखाना है। और जो आयोजक अपने आपको कवियों का नियामक समझकर उन्हें कविता लिखने-पढ़ने का सलीक़ा सिखाने निकले हैं, उन्हें समझना होगा कि नंदवंश और कुरुवंश क्यों नष्ट हुए!
कांग्रेस हो या भाजपा; आप हो या सपा... कवि-सम्मेलनों में हो रहे मनोरंजन और वैचारिक विमर्ष को सहिष्णु होकर सुनना आपकी नैतिकता नहीं आवश्यकता है। क्योंकि यदि मंच ने आपके मन मुताबिक आपको प्रसन्न करना शुरू कर दिया तो यह आपकी राजसत्ता को विनष्ट करने का उपाय होगा!
आपातकाल हो या बोफोर्स; कॉमनवेल्थ हो या अन्ना आंदोलन, कवि सम्मेलन का मंच हमेशा जनता के पक्ष में खड़ा दिखाई दिया है। राजनीति यह अच्छी तरह समझ ले कि कड़वा पचाने की क्षमता न रही तो सत्ता के चाटुकारों की मनपसंद बातें तुम्हारे लिए मधुमेह बन जाएगी।

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