Wednesday, November 8, 2023

समय के चक्रव्यूह का अथक जोधा : शैलेश लोढा

वर्ष 2005 में हिंदी कवि सम्मेलन टेलिविज़न के परदे पर नए रूप में अस्तित्व खोज रहे थे। तमाम चैनल प्राइम टाइम में कवि सम्मेलन दिखा रहे थे, लेकिन कवि सम्मेलनों का परंपरागत प्रारूप टीवी के फॉर्मेट में फिट नहीं हो पा रहा था। ऐसे में सम्भवतः 2005 में talent hunt का प्रयोग करके कवि सम्मेलन का प्रारूप टीवी के अनुरूप बनाने का प्रयोग किया गया। प्रयोग बहुत सफल तो नहीं रहा लेकिन यहाँ से यह बात सिद्ध हो गई कि बिना स्वरूप परिवर्तन के कवि-सम्मेलन को अधिक समय तक टीवी पर दिखाना सम्भव नहीं है।
इस talent hunt में मैं भी एक प्रतिभागी था, निर्णायक मंडल में थे श्री ओमप्रकाश आदित्य, डॉ बशीर बद्र और उर्वशी ढोलकिया। एंकर थे शैलेश लोढा और तनाज़ करीम। शंभू शिखर, पवन आगरी और रमेश मुस्कान सरीखे कवि भी इस प्रतियोगिता में भाग ले रहे थे।
मेरा शैलेश भाई से पहला परिचय पहले हो चुका था, लेकिन इस शो के सेट पर उनकी लगभग सनकी धुन ने मुझे बहुत प्रभावित किया।
इसके बाद मैंने अनेक बार शैलेश भाई से मुलाकात की। हर समय शरारत से भरे रहना और हर क्षण सतर्क रहने का उनका कौशल देखकर, उन्हें और अधिक जानने की जिज्ञासा जी उठी।
समान्य दृष्टि से उन्हें समझ पाना सम्भव नहीं है। उनसे जब मिलो, वे किसी अलग मानसिकता अथवा दार्शनिक अवस्था में मिलते हैं। मुंबइया जीवन की रूखी व्यावसायिकता से घिरे हुए जब उन्हें कवि सम्मेलन का कोई पुराना साथी मिल जाता है तो वे एक झटके में ग्लैमर और सेलिब्रिटिज्म का कोट उतारकर, कवि सम्मेलन के देसी गमछे से मेकअप पोंछ डालते हैं। इस अनुष्ठान के उपरांत वे जोधपुर के बेहद भावुक और सरल इंसान बन जाते हैं। इस अवस्था में वे सिर से पाँव तक खालिस 'दोस्त' होते हैं। इस समय उन पर अधिकार जताया जा सकता है, इस समय उनसे बेतकल्लुफ बातचीत की जा सकती है, इस समय उनके साथ 'जी लगदा यार फकीरी में' का अनुभव लिया जा सकता है।
इसी समय में वे अपने सर्वाधिक ख़ूबसूरत पल जी रहे होते हैं। इस समय वे सर्वाधिक निश्चिंत होते हैं।
लेकिन इस निश्चिंतता में कोई ख़लल न पड़े, इसलिए इस निश्चिंत महफ़िल को संजोने में वे कई बार आवश्यकता से अधिक चौकन्ने रहने का प्रयास करते हैं। दोस्तों पर वे संदेह नहीं करते, लेकिन किसी को दोस्ती के दायरे तक लाने से पहले अच्छी तरह विचार अवश्य करते हैं।
उनकी भावुक आँखों में उतरी पनीली लकीरों में मुझे भावुकता के हाथों छले जाने के उनके कटु अनुभवों को कई बार लाली बिखेरते देखा है।
अतीत की यादों का सूरज जब आँखों में उगता है तो कड़वाहट से आंखें लाल हो जाती हैं और भावुकता से नम!
मैंने नमी और लाली के इस क्षितिज पर अपनी व्यस्तता से जूझकर अपने लिए मुट्ठी भर समय जीत लाने वाले शैलेश लोढा को हर बार दिल से प्यार किया है, और अपने मन की महफ़िल के सम्मोहन से मुख मोड़कर अपनी व्यस्तता के घने जंगल की ओर दौड़ जाने वाले शैलेश लोढा का जी भर आदर किया है।

© चिराग़ जैन

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