Saturday, February 3, 2024

आचरण श्रीराम जैसा

राज वैभव की नहीं है चाह कोई
कीर्ति की, यश की नहीं परवाह कोई
जय-पराजय की घड़ी में मन सहज हो
शोक हो, भय हो, न हो उत्साह कोई
राम, मुझको दो भले मत आवरण श्रीराम जैसा
दे सको तो दो मुझे बस आचरण श्रीराम जैसा

जग जिसे पाषाण माने, देख लूँ मैं साँस उसकी
जो नदी तट पर खड़ा हो, जान पाऊँ प्यास उसकी
याचना से जो पिता को धर्मसंकट में फँसाए
मैं स्वयं को दांव पर रखकर सुनूँ अरदास उसकी
हर कठिन क्षण का करूँ वातावरण श्रीराम जैसा
दे सको तो दो मुझे बस आचरण श्रीराम जैसा

प्रेम की जूठन नहीं, केवल समर्पण भाव देखूँ
वृद्ध पक्षी की पराजय भूल, उसके घाव देखूँ
मित्रता में मित्र का जीवन सुलझना प्राथमिक हो
तब कहीं निज भाग्यरेखा का कोई उलझाव देखूँ
धीर के शृंगार से अंतःकरण श्रीराम जैसा
दे सको तो दो मुझे बस आचरण श्रीराम जैसा

जब चयन का प्रश्न आए, साधना का पथ चुनूँ मैं
कथ्य की इति हो जहाँ पर, उस जगह से अथ चुनूँ मैं
जब परिस्थितियाँ कई चेहरे बनाकर सामने हों
तब समर में जूझने को आत्मबल का रथ चुनूँ मैं
हर समय, हर भाव का हो व्याकरण श्रीराम जैसा
दे सको तो दो मुझे बस आचरण श्रीराम जैसा

~चिराग़ जैन

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