Wednesday, June 19, 2024

बोनसाई

आदेशों का दास नहीं है शाखा का आकार कभी 
ले तक सीमित मत करना पौधे का संसार कभी 

जड़ के पाँव नहीं पसरे तो, छाँव कहाँ से पाओगे 
जिस पर पंछी घर कर लें वो ठाँव कहाँ से लाओगे 
बालकनी में बंध पाया क्या, बरगद का विस्तार कभी 

कोंपल, बूटे, कलियाँ, डाली; ये सब कुछ आबाद रहे
तब ही आती है ख़ुशहाली, जब मौसम आज़ाद रहे 
नभ में चहक नहीं भर सकता, पिंजरे का परिवार कभी 

सीमा में जकड़े बिरवे की सहज सुगंध नदारद है 
जो तितली की बाँह पकड़ ले, वो मकरंद नदारद है 
नकली पेड़ों पर बरसा है, क्या बादल का प्यार कभी 

नज़रों को दौड़ाना सीखो, विस्तारों को मत छाँटो 
घर में चहक भरी रखने को, चिड़िया के पर मत काटो 
पलकों में भर पाता है क्या, सूरज का उजियार कभी 

✍️ चिराग़ जैन 

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