सामाजिक व्यवहार में मैच्योरिटी की परिभाषा तलाशता हूँ तो पाता हूँ कि सही और ग़लत का निर्धारण करने से पहले अपने व्यक्तिगत लाभ और हानि का आकलन करने की क्षमता को मैच्योरिटी कहते हैं। यद्यपि यह परिभाषा मैंने स्वयं गढ़ी है, तथापि मैच्योर कहे जानेवाले अधिकतम लोगों को मैंने इस परिभाषा पर खरा उतरते देखा है। मेरा निजी मत यह है कि इस परिभाषा की परवाह न करते हुए सहज आचरण करनेवाले लोग अधिक निश्छल, अधिक प्यारे और अधिक जेनुइन होते हैं। सामान्य भाषा में इनके लिए एक विशेष शब्द प्रयुक्त किया जाता है जो ‘मूर्ख’ शब्द का निकटतम पर्यायवाची है।
मुझे ऐसे तथाकथित मूर्ख अधिक नैतिक और अधिक निस्पृह लगते हैं। मैं अपने ख़ुद के आचरण में इस ‘मूर्खता’ को कई बार आसानी से खोज लेता हूँ। यह सत्य है कि एमैच्योरिटी सामाजिक दृष्टि से असफलता की ओर ले जाती दिखाई देती है लेकिन मुझे ऐसे लोग तथाकथित ‘मैच्योर’ लोगों से अधिक बहादुर लगते हैं।
ऐसे ही एक एमैच्योर व्यक्ति हैं श्री विनीत चौहान। किसी भी घटना पर त्वरित प्रतिक्रिया के साथ तैयार। लाभ-हानि का गणित लगाने का अवसर ख़ुद को ही नहीं देते। लड़ते हैं तो पूरी ऊर्जा से, क्योंकि जिस बात के लिए लड़ रहे होते हैं उसको अपने अन्तःकरण से ‘सच’ मान चुके होते हैं। जिसे अपना कह देते हैं, वह यदि उनसे छल भी कर रहा हो तो उसका छल बहुत देर में देख पाते हैं, क्योंकि अपने पूरे अन्तःकरण से उसे अपना मान चुके होते हैं। भावुक इतने कि संवेदना की किसी पंक्ति के पूरा होने से पहले ही आँखों में आँसू डबडबाने लगते हैं। मैंने अनेक अवसरों पर किसी पुरानी याद का संस्मरण सुनाते-सुनाते उनका गला रुंधते देखा है।
आज इस पारदर्शी व्यक्तित्व का जन्मदिन है। हिंदी कवि-सम्मेलन जगत् में मैच्योर लोगों की भीड़ के बीच जिन चंद किरदारों की संगत से मन खिल उठता है, उनमें विनीत जी एक हैं। विनीत जी अलवर से हैं और अलवर मेरी ननिहाल है, इस रिश्ते से मैं उन्हें ‘मामा’ कहकर संबोधित करता हूँ। मामा को ज्यों-ज्यों करीब से देखा, त्यों-त्यों समझ आया कि ‘हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी’ का अर्थ सकारात्मक भी हो सकता है। कितने ही किस्से हैं, जहाँ मामा का व्यक्तित्व अपने ही किसी पुराने व्यवहार के ठीक विपरीत दिखाई देने लगा।
किसी की पीड़ा पर बिलख पड़नेवाला शख़्स जब दुर्घटना में क्षत-विक्षत कविमित्रों को गाड़ी से बाहर निकालने के लिए गाड़ी के शीशे तोड़ता है तो उसके वज्रहृदयी होने के प्रमाण मिलते हैं। किसी की अनैतिकता पर क्रुद्ध हो जानेवाले विनीत चौहान जब किसी की विवशता का विश्लेषण करते हैं तो ऐसा लगता है ज्यों कोई करुण रस का कवि संवेदना की परतों को स्पर्श करना चाह रहा हो। जिनका मन भर आदर करते हैं, उनको भी यदि कहीं ग़लत पाते हैं तो उनसे जी भर कर लड़ लेते हैं।
विनीत चौहान का स्वभाव एक ऐसे संवेदनशील मनुष्य का उदाहरण है, जो मैच्योर सहगामियों के साथ रहकर भी अपनी निस्पृह प्रतिक्रियाओं को मैच्योर बनाने की न तो कभी इच्छा पाल सका, न ही ऐसी कोई आवश्यकता महसूस कर सका।
दोस्ती कैसे निभाई जाती है और दोस्त को साधिकार कैसे टोका जाता है, इस बात को समझना हो तो विनीत चौहान के अपनत्व के दायरे में प्रवेश करके देखिए!