प्रशांत महासागर के पश्चिमी छोर पर बसा ख़ूबसूरत देश है न्यूज़ीलैंड। मुस्कराते हुए लोगों का देश। चेहरे पर ज़िन्दगी जैसी ख़ूबसूरत ताज़गी लिए यहाँ के लोग तनाव और उन्माद से अछूते दिखाई देते हैं।
इन दिनों यहाँ पतझड़ का मौसम है। 'मुहब्बतें' फिल्म वाले मेपल के पत्ते सड़कों का शृंगार करने में व्यस्त हैं। पेड़ों से पत्ते झड़ चुके हैं, लेकिन पेड़ों के अस्तित्व में कहीं कोई शिकायत महसूस नहीं होती, उल्टे वे मौसम की इस छटा को संवारते ही दिखाई देते हैं।
आसमान के खुले मैदान में सूरज और बादलों की आँख-मिचौनी लगातार चलती रहती है। सूर्यदेव बहुत सवेरे ड्यूटी पर आ जाते हैं और उतनी ही जल्दी घर भाग जाते हैं। रात में शहर का तापमान 3° सेल्सियस तक गोता लगा लेता है और दिन में कभी 17°-18° से आगे पांव नहीं बढ़ाता। हवाएं मौसम की ठंडक को बढ़ाते हुए इतराती फिरती हैं। ऐसे में धूप की गुनगुनी छुअन देह के रोम-रोम को दुलारती है, तो मन भी खिल उठता है।
ऑकलैंड शहर के बीचोंबीच सुदीमा होटल में हमारा प्रवास है। छठे माले के टू साइड ओपन फॅमिली स्वीट के दोनों ओर बड़ी-बड़ी खिड़कियों से शहर दिखाई देता है। ठीक सामने स्काई टावर है। 328 मीटर ऊँची यह शानदार इमारत ऑकलैंड की पहचान है।
स्थानीय समयानुसार 18 जून की शुरुआत होते-होते हम लोग इमिग्रेशन की औपचारिकता संपन्न करके, लगेज बेल्ट से अपना सामान बरामद करते हुए हवाई अड्डे से बाहर निकल आए थे।
बाहर दस-बारह लोग हमारी प्रतीक्षा में खड़े थे। स्वागत-सत्कार के दौरान मैंने सभी की आँखों में अपने देश से आए अतिथियों के प्रति वही अपनत्व देखा, जो मायके के गांव से आए किसी व्यक्ति के प्रति सासरे में बसी बिटिया की आँखों में होता है।
प्रेम उपाध्याय, जो हमारे मुख्य आयोजक हैं, उनके कंधे पर आयोजन का लगभग सारा ही दायित्व था। हमें लाने-लिवाने से लेकर कार्यक्रम की टिकटें बुक करने तक का 'संपूर्ण दायित्व' प्रेम ने खुद के हाथों में सीमित रखा। उनका वश चलता तो वे शायद हम तीनों कवियों को किसी डब्बे में पैक करके कहीं छुपा देते ताकि कोई हमें देख भी न सके।
प्रेम उपाध्याय काफी मददगार स्वभाव के व्यक्ति हैं। उन्होंने मुझे बताया कि जिन खुशबू जी को उन्होंने वीजा की प्रक्रिया के लिए नियुक्त किया था, वे उनके मित्र की पत्नी हैं और उन्होंने वीज़ा लगवाने का नया काम शुरू किया है, इसलिए केवल उनको प्रोत्साहित करने के लिए प्रेम ने उन्हें यह काम सौंपा। ऐसे बेहतर मनुष्य मुश्किल से मिलते हैं, जो स्वयं किसी काम में पारंगत होते हुए भी अपने दोस्त की पत्नी को मोटिवेशन देने के लिए काम भी दे और फीस भी।
इनकी सहृदयता का एक उदाहरण यह भी था कि वीज़ा की प्रक्रिया के दौरान खुशबू जी ने हमसे कुछ दस्तावेज़ मांगे तो प्रेम ने मुझे भारी-भरकम अंग्रेजी का एक मेसेज लिखकर भेजा और मुझे कहा कि मैं यह खुशबू को इसलिए भेज दूँ ताकि उन्हें प्रोफेशनल व्यवहार सिखाया जा सके। प्रेम उपाध्याय के इस परोपकारी स्वभाव से मैं भावुक हो उठा।
न्यूज़ीलैंड में प्रेम ने दो शो बुक किए थे। एक ऑकलैंड में और दूसरा क्राइस्ट चर्च में। दुर्भाग्य यह रहा कि उन्हीं दिनों न्यूज़ीलैंड में कुछ और सेलिब्रिटी भी कार्यक्रम कर रहे थे। वहां रहनेवाले भारतीय सीमित थे और कार्यक्रम अधिक हो गए तो क्राइस्ट चर्च के आयोजक ने कार्यक्रम रद्द कर दिया। प्रेम ने हमें बताया कि उस कार्यक्रम के लिए लगभग साढ़े तीन हज़ार डॉलर की टिकटें प्रेम ने अपनी जेब से करायी और यह सारा नुकसान उन्होंने अपनी जेब से भुगता। उनकी इस विनम्रता के कारण कवियों ने भी उस रद्द हुए कार्यक्रम का कोई मानदेय प्रेम उपाध्याय से नहीं लिया।
चूँकि सुदीमा होटल एक भारतीय परिवार द्वारा संचालित था, इसलिए हमें आश्वस्ति थी कि इस होटल में हमें भारतीय भोजन आराम से मिल जाएगा। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। प्रेम उन दिनों व्यस्तता के चरम पर थे। वे स्वयं ही एक-एक व्यक्ति को फोन करके टिकट बेच रहे थे, स्वयं ही हमारे ड्राईवर बनकर हमें खाना खिलाने ले जा रहे थे, स्वयं ही कार्यक्रम की व्यवस्था में संलग्न थे और स्वयं ही अपने sponsor लोगों से संपर्क में थे।
एक दिन वे हमें हरपाल जी के घर भोजन पर ले गए। हरपाल जी एक पंजाबी व्यक्ति हैं और उनकी पत्नी किरण जी फीजी से हैं। किरण जी की कलात्मक अभिरुचि ने उनके घर को एक छोटा-मोटा संग्रहालय बना दिया है। रसोई से लेकर आँगन तक, सब कलापूर्ण। किरण जी त्वचा संबंधी समस्याओं का एक क्लिनिक चलाती हैं। उनके क्लिनिक का प्रत्येक कोना इतना कलात्मक है कि आदमी अपनी बीमारी भूल जाए।
किरण जी ने बहुत रुचि से हमें भोजन कराया। स्वाद के साथ अपनत्व भी तैर रहा था उनकी रोटियों पर। मैंने उनकी रसोई की खूब photography की। उनके पति भी सरस तथा मददगार वृत्ति के व्यक्ति हैं। कलाकारों के प्रति उनके व्यवहार में जो आदरभाव दिखा, वह मेरे लिए अविस्मरणीय था।
रात का भोजन हरपाल जी के सौजन्य से संपन्न हुआ और अगली सुबह के नाश्ते के लिए हम होटल के रेस्तरां में जूझते रहे। हम समझ चुके थे कि इस यात्रा में भोजन की चुनौती आनेवाली है, इसलिए सुरेन्द्र जी ने प्रेम उपाध्याय के सामने एक प्रस्ताव रखा कि हम प्रेम के घर से स्वयं भोजन बनाकर ले आया करें, लेकिन प्रेम जी तो स्वयं हमारे साथ होटल में पड़े थे। उन्होंने हमें बताया कि वे यहाँ अकेले रहते हैं और जिस कमरे में वे रहते हैं, उसमें और भी कुछ बैचलर लड़के रहते हैं। इसलिए उस स्थान पर कवियों को ले जाना उन्हें असहज कर देगा। हमने उनकी असमर्थता का सम्मान किया और विपरीत परिस्थितियों में इस यात्रा को आनंद सहित संपन्न करने के लिए कमर कस ली।
अगली दोपहर हमें 'शिवानी' नामक एक रेस्तरां में ले जाया गया। इसकी मालकिन शिवानी जी ने बड़े मन से हमें भोजन कराया। भोजन में भारतीय महक थी और यह स्थान हमारे होटल से अधिक दूर भी नहीं था इसलिए सुरेन्द्र जी ने चाहा कि इसी स्थान से हमारा भोजन का इंतजाम करा दिया जाए। लेकिन न जाने क्यों, प्रेम उपाध्याय ने इस प्रस्ताव को लगभग अनसुना कर दिया।
शिवानी जी के रेस्तरां से वापसी होटल आते समय हमें रास्ते में माउंट ईडन नामक एक स्थान पर छोड़कर हमारा आयोजक फोन पर टिकटें बेचने में जुट गया। सुरेन्द्र जी गाड़ी में बैठे रहे और मैं धीरे-धीरे चलकर पर्वत की चोटी तक पहुँचकर ऑकलैंड शहर का विहंगम दृश्य देखता रहा।
हम अनवरत यह सोचते रहे कि न्यूजीलैंड में रहनेवाले भारतीय काफी नीरस प्रवृत्ति के लोग हैं, इसीलिए इतने लंबे प्रवास में न तो कोई हमसे मिलने आया और न ही किसी ने हमें आमंत्रित करने की कोशिश की। प्रवासी भारतीयों के इस व्यवहार से प्रेम भी काफी खिन्न दिखे।
लेकिन 21 तारीख़ को जब कार्यक्रम आयोजित होना था तब सबका व्यवहार इतना मधुर था कि हमें पिछले 4 दिन की बोरियत और चुनौती का कारण समझना कठिन हो गया। खिलखिलाते हुए लोग, हमसे मिलने को आतुर लोग, हमारे साथ फोटो खिंचवाने की होड़, हमारा सान्निध्य पाने की ललक... यह सब देखकर हमें आश्चर्य भी हुआ, हर्ष भी और कष्ट भी।
ऑकलैंड के वातावरण में परागकण बहुतायत में हैं, जिन्हें पौलन कहा जाता है। इनके कारण साइनस, अस्थमा और एलर्जी के रोगियों को दिक्कत हो जाती है। कार्यक्रम के दिन मुझे इस समस्या ने घेर लिया था। साइनस चरम पर था। मैंने प्रेम से कहा कि कोई नेज़ल स्प्रे मंगवा दे ताकि शाम का कार्यक्रम ठीक हो जाए। प्रेम ने मुझे Peracitamol tablet मंगवा कर दी। शाम को कार्यक्रम से पहले सुमित नामक सज्जन हमें लेने होटल आए। उन्होंने मेरी तबीयत देखी तो उन्होंने ही वातावरण के इस 'हे-फीवर' के विषय में बताया। वे आश्चर्य कर रहे थे कि प्रेम ने उन्हें यह बता दिया होता तो इसका उचित उपचार (नेज़ल स्प्रे और आई drop) मैं ला देता।
सिरदर्द, जुकाम और बुखार से पीड़ित मैं आयोजन स्थल पर पहुँच गया। ग्रीन रूम में मालव जी ने मेरी स्थिति को देखकर मेरे लिए ortivin मंगवाई। उसकी बदौलत मैं कार्यक्रम ठीक से संपन्न कर सका।
उधर कार्यक्रम प्रारंभ होने से पूर्व ही प्रेम ने शो फ्लो क्लियर कर दिया था। हमारी प्रस्तुति 2 घंटे की थी, फिर एक मध्यांतर और उसके बाद बकौल प्रेम उपाध्याय, कुछ सरप्राइज था, जिसके विषय में शो की एंकर को भी नहीं पता था।
कार्यक्रम धमाल हुआ। ठहाकों की बरसात हुई। श्रोताओं ने हँसी का जी भरकर लुत्फ़ उठाया। भारत और भारतीयता से माहौल उत्साहित हो गया। स्टैंडिंग ओवेशन से लोगों ने कवियों को सैल्यूट किया। इसके बाद मध्यांतर की घोषणा हुई। हालाँकि शो जहाँ पहुंच चुका था, इसके बाद मध्यांतर का कोई औचित्य नहीं था। लेकिन आयोजक ने शायद मध्यांतर के लिए किसी रेस्तरां वाले से कुछ sponsorship ले रखी थी। इसलिए वह कार्यक्रम की सफलता की कीमत पर भी मध्यांतर जरूर करना चाहता था।
वही हुआ जिसका डर था। मध्यांतर के बाद हॉल में केवल 20 प्रतिशत लोग लौटे। इनमें से अधिकतर वे sponsor थे, जिनका सम्मान किया जाना था।
कला, जिस कार्यक्रम को चरम पर ले आई थी, बाजार ने उसे काफी नीचे लाकर समाप्त किया। यद्यपि जो लोग कविता और हास्य सुनने आए थे, वे संतुष्ट भी थे और प्रसन्न भी।
अगला पूरा दिन आयोजक के व्यवहार तथा कृतघ्नता के कारण बोरियत और खिन्नता से भरा रहा। रात का भोजन नमस्ते भारत के संचालक दंपति ने इतना स्वादिष्ट भेजा कि दिन भर का कष्ट बौना रह गया। अगली सुबह हमारा किसी के घर नाश्ते का कार्यक्रम था और फिर वहीं से हमें हवाई अड्डे चले जाना था। सुबह-सुबह ज्ञात हुआ कि नाश्ते का कार्यक्रम कैंसिल हो गया है। हमने रात के बचे हुए भोजन से काम चलाया और अंततः वीज़ा लगवाने वाली खुशबू जी के घर से रास्ते का भोजन लेकर हम रवाना हो गए। जिस देश में हमें रिसीव करने आधी रात को दर्जन भर लोग मौजूद थे, उस देश में भरी दोपहर में एक शानदार प्रस्तुति के बाद भी कोई हमें सी-ऑफ करने नहीं आया।
अंतिम दिन तक हम समझ चुके थे कि हमारे साथ पिछले 6 दिन से क्या हो रहा था। न्यूज़ीलैंड के लोगों में 'नेहा कक्कड़' नामक एक कलाकार के प्रति काफ़ी रोष था। हमें बताया गया कि 3 वर्ष पूर्व इसी आयोजक ने नेहा कक्कड़ को किसी शो के लिए बुलाया था और नेहा ने इस आयोजक को काफी परेशान किया था।
हवाई जहाज की खिड़की से न्यूज़ीलैंड की धरती पीछे छूटती दिख रही है। बादलों में नेहा कक्कड़ के प्रति करुणा और इस आयोजक के मददगारों के प्रति दया की तस्वीर उभर रही है।
हँसते और चहचहाते हुए देश में एक मुखौटे की उपस्थिति कैसे पंचवटी के रमणीक माहौल को शोक और निराशा के अंधकूप में धकेल सकती है, इसका अनुभव लेकर भारत की दिशा में उड़ चला हूँ।
✍️ चिराग़ जैन
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