बरसों से बरसते हैं अब क्या असर करेंगे
बेबस ये बसेरे हैं कैसे बसर करेंगे
रुकती है नज़र जाकर चूते हुए छप्पर पे
छप्पर को भी गिरा दो खुलकर सबर करेंगे
© चिराग़ जैन
गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Wednesday, August 27, 2003
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Wednesday, August 13, 2003
हुनर
तनहा-तनहा था सफ़र क्या कहिए
आपका साथ मगर क्या कहिए
मुझको मूरत में कर दिया तब्दील
तेरे हाथों का हुनर क्या कहिए
© चिराग़ जैन
आपका साथ मगर क्या कहिए
मुझको मूरत में कर दिया तब्दील
तेरे हाथों का हुनर क्या कहिए
© चिराग़ जैन
Friday, August 1, 2003
मिरी आँखों का मंज़र देख लेना
मिरी आँखों का मंज़र देख लेना
फिर इक पल को समन्दर देख लेना
सफ़र की मुश्क़िलें रोकेंगी लेकिन
पलटकर इक दफ़ा घर देख लेना
किसी को बेवफ़ा कहने से पहले
ज़रा मेरा मुक़द्दर देख लेना
बहुत तेज़ी से बदलेगा ज़माना
कभी दो पल ठहरकर देख लेना
हमेशा को ज़ुदा होने के पल में
घड़ी भर ऑंख भरकर देख लेना
मिरी बातों में राहें बोलती हैं
मिरी राहों पे चलकर देख लेना
न पूछो मुझसे कैसी है बुलन्दी
मैं जब लौटूँ मिरे पर देख लेना
मुझे बेताब कितना कर गया है
किसी का आह भरकर देख लेना
ज़माने की नज़र में भी हवस थी
तुम्हें भी तो मिरे परदे खले ना
मिरे दुश्मन के हाथों फैसला है
क़लम होगा मिरा सर देख लेना
© चिराग़ जैन
फिर इक पल को समन्दर देख लेना
सफ़र की मुश्क़िलें रोकेंगी लेकिन
पलटकर इक दफ़ा घर देख लेना
किसी को बेवफ़ा कहने से पहले
ज़रा मेरा मुक़द्दर देख लेना
बहुत तेज़ी से बदलेगा ज़माना
कभी दो पल ठहरकर देख लेना
हमेशा को ज़ुदा होने के पल में
घड़ी भर ऑंख भरकर देख लेना
मिरी बातों में राहें बोलती हैं
मिरी राहों पे चलकर देख लेना
न पूछो मुझसे कैसी है बुलन्दी
मैं जब लौटूँ मिरे पर देख लेना
मुझे बेताब कितना कर गया है
किसी का आह भरकर देख लेना
ज़माने की नज़र में भी हवस थी
तुम्हें भी तो मिरे परदे खले ना
मिरे दुश्मन के हाथों फैसला है
क़लम होगा मिरा सर देख लेना
© चिराग़ जैन
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