गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Wednesday, August 27, 2003
स्वीकार
बरसों से बरसते हैं अब क्या असर करेंगे बेबस ये बसेरे हैं कैसे बसर करेंगे रुकती है नज़र जाकर चूते हुए छप्पर पे छप्पर को भी गिरा दो खुलकर सबर करेंगे
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