Friday, August 1, 2003

मिरी आँखों का मंज़र देख लेना

मिरी आँखों का मंज़र देख लेना
फिर इक पल को समन्दर देख लेना

सफ़र की मुश्क़िलें रोकेंगी लेकिन
पलटकर इक दफ़ा घर देख लेना

किसी को बेवफ़ा कहने से पहले
ज़रा मेरा मुक़द्दर देख लेना

बहुत तेज़ी से बदलेगा ज़माना
कभी दो पल ठहरकर देख लेना

हमेशा को ज़ुदा होने के पल में
घड़ी भर ऑंख भरकर देख लेना

मिरी बातों में राहें बोलती हैं
मिरी राहों पे चलकर देख लेना

न पूछो मुझसे कैसी है बुलन्दी
मैं जब लौटूँ मिरे पर देख लेना

मुझे बेताब कितना कर गया है
किसी का आह भरकर देख लेना

ज़माने की नज़र में भी हवस थी
तुम्हें भी तो मिरे परदे खले ना

मिरे दुश्मन के हाथों फैसला है
क़लम होगा मिरा सर देख लेना

© चिराग़ जैन

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