सच के मंतर से सियासत का ज़हर काट दिया
हाँ, ज़रा रास्ता मुश्क़िल था, मगर काट दिया
वक्ते-रुख़सत तिरी ऑंखों की तरफ़ देखा था
फिर तो बस तेरे तख़य्युल में सफ़र काट दिया
फिर से कल रात मिरी मुफ़लिसी के ख़ंज़र ने
मिरे बच्चों की तमन्नाओं का पर काट दिया
सिर्फ़ शोपीस से कमरे को सजाने के लिए
हाय ख़ुदगर्ज़ ने खरगोश का सर काट दिया
एक छोटा-सा दिठौना मिरे माथे पे लगा
बद्दुआओं का मिरी माँ ने असर काट दिया
© चिराग़ जैन
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