Thursday, December 9, 2004

मर्यादा

न हों हदों में तो छाले रिसाव देते हैं
किनारे धार को बाढब बहाव देते हैं
हदों में हैं तो ख़ैर-ख्वाह हैं उंगलियों के
हदों को लांघ के नाखून घाव देते हैं

© चिराग़ जैन

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