Saturday, June 25, 2005

मुझे तुम भूल सकते थे

फ़ज़ाई रक्स होता तो मुझे तुम भूल सकते थे
तुम्हारा अक्स होता तो मुझे तुम भूल सकते थे
तुम्हारी चाह हूँ, आदत, इबादत हूँ, मुहब्बत हूँ
महज एक शख्स होता तो मुझे तुम भूल सकते थे

© चिराग़ जैन 

Tuesday, June 21, 2005

दिल के अरमान हैं

लफ़्ज़ आँखों के किनारों पे ठहर जाते हैं
अश्क़ होठों पे हँसी बन के बिखर जाते हैं
ये ज़माना जिन्हें अशआर कहा करता है
दिल के अरमान हैं काग़ज़ पे उतर जाते हैं

© चिराग़ जैन

Friday, June 17, 2005

गीत लिखते वक़्त

इक दफ़ा पलकों को अश्क़ों में भिगो लेते हैं हम
और फिर अधरों पे इक मुस्कान बो लेते हैं हम
गीत गाते वक्त रुंध ना जाए स्वर इसके लिए
गीत लिखते वक्त ही जी भर के रो लेते हैं हम

© चिराग़ जैन 

Wednesday, June 8, 2005

याद

कभी जब नीम की डाली पे चिड़ियाँ चहचहाती हैं
हज़ारों ख्वाहिशें दिल में तड़पकर कुलबुलाती हैं
मेरे आगे से जब भी ख़ुशनुमा मंज़र गुज़रते हैं
किसी की याद में भरकर ये आँखें छलछलाती हैं

© चिराग़ जैन