फ़ज़ाई रक्स होता तो मुझे तुम भूल सकते थे
तुम्हारा अक्स होता तो मुझे तुम भूल सकते थे
तुम्हारी चाह हूँ, आदत, इबादत हूँ, मुहब्बत हूँ
महज एक शख्स होता तो मुझे तुम भूल सकते थे
© चिराग़ जैन
गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Saturday, June 25, 2005
Tuesday, June 21, 2005
दिल के अरमान हैं
लफ़्ज़ आँखों के किनारों पे ठहर जाते हैं
अश्क़ होठों पे हँसी बन के बिखर जाते हैं
ये ज़माना जिन्हें अशआर कहा करता है
दिल के अरमान हैं काग़ज़ पे उतर जाते हैं
© चिराग़ जैन
अश्क़ होठों पे हँसी बन के बिखर जाते हैं
ये ज़माना जिन्हें अशआर कहा करता है
दिल के अरमान हैं काग़ज़ पे उतर जाते हैं
© चिराग़ जैन
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Friday, June 17, 2005
गीत लिखते वक़्त
इक दफ़ा पलकों को अश्क़ों में भिगो लेते हैं हम
और फिर अधरों पे इक मुस्कान बो लेते हैं हम
गीत गाते वक्त रुंध ना जाए स्वर इसके लिए
गीत लिखते वक्त ही जी भर के रो लेते हैं हम
और फिर अधरों पे इक मुस्कान बो लेते हैं हम
गीत गाते वक्त रुंध ना जाए स्वर इसके लिए
गीत लिखते वक्त ही जी भर के रो लेते हैं हम
© चिराग़ जैन
Wednesday, June 8, 2005
याद
कभी जब नीम की डाली पे चिड़ियाँ चहचहाती हैं
हज़ारों ख्वाहिशें दिल में तड़पकर कुलबुलाती हैं
मेरे आगे से जब भी ख़ुशनुमा मंज़र गुज़रते हैं
किसी की याद में भरकर ये आँखें छलछलाती हैं
© चिराग़ जैन
हज़ारों ख्वाहिशें दिल में तड़पकर कुलबुलाती हैं
मेरे आगे से जब भी ख़ुशनुमा मंज़र गुज़रते हैं
किसी की याद में भरकर ये आँखें छलछलाती हैं
© चिराग़ जैन
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