Tuesday, June 21, 2005

दिल के अरमान हैं

लफ़्ज़ आँखों के किनारों पे ठहर जाते हैं
अश्क़ होठों पे हँसी बन के बिखर जाते हैं
ये ज़माना जिन्हें अशआर कहा करता है
दिल के अरमान हैं काग़ज़ पे उतर जाते हैं

© चिराग़ जैन

No comments:

Post a Comment