Saturday, December 9, 2006

छलना

मटक-मटक लट झटक-झटक; हिया-
पट खटपट खटकाती है गुजरिया
ठक-ठक-ठक खटकात नटखट
मोरे हिवड़ा के पट, बतलाती है गुजरिया
लाग न लपट, तज अंगना का वट
झट जमना के तट, चली आती है गुजरिया
लेवे करवट जब मन का कपट
उस पल झटपट नट जाती है गुजरिया 

© चिराग़ जैन

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