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Tuesday, December 12, 2006
आज़माइश
यहाँ चलता नहीं दस्तूर कोई भी ज़माने का ग़ज़ब है लुत्फ़ इन राहों पे सब कुछ हार जाने का नज़र मिलते ही दिल काबू से बाहर जान पड़ता है मुहब्बत में कहाँ मिलता है मौक़ा आज़माने का
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