हमने सूरज को यहाँ डूब के मरते देखा
और जुगनू से अंधेरों को सँवरते देखा
तूने जिस बात पे मुस्कान के पर्दे डाले
हमने उसको तेरी आँखों में उतरते देखा
एक लमहे में तेरे साथ कई रुत गुज़रीं
तेरे जाने पे मगर वक़्त ठहरते देखा
लोग कहते हैं बस इक शख़्स मरा है लेकिन
क्या किसी ने वहाँ सपनों को बिखरते देखा
तेरे विश्वास में कोई कमी रही है ‘चिराग़’
वरना पुरखों ने तो पत्थर को भी तरते देखा
© चिराग़ जैन
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