गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Wednesday, February 14, 2007
मेहमानों का आना-जाना
वो, जिनके घर मेहमानों का आना-जाना होता है उनको घर का हर कमरा, हर रोज़ सजाना होता है जिस देहरी की किस्मत में स्वागत या वंदनवार न हो उस चौखट के भीतर केवल इक तहख़ाना होता है
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