Tuesday, March 1, 2011

बेचारा ईश्वर

मैंने देखा-
मूसलाधार बारिश में
भीग रही थी
ईश्वर की मूर्ति

मैंने सोचा-
थपेड़े भी सहती होगी
गर्म लू के
इसी तरह।

मैंने महसूस किया-
सर्दी-गर्मी-बरसात
नंगे बदन
कैसे खड़ा रहता है परमात्मा।

...और तब मैंने चाहा-
काश, कोई इसकी भी सुध ले!

© चिराग़ जैन

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