पल-पल भारी होती पलकों के
अलसाए झरोखों से
पढ़ ही लेता हूँ
देर रात
मोबाइल स्क्रीन पर आया
तुम्हारा नाम!
करवट बदलकर
निंदियारी आँखें
पहुँच ही जाती हैं
उंगलियों के सहारे
इनबाॅक्स तक!
...देर तक पढ़ता हूँ
मैसेज में लिखे
दो छोटे-छोटे शब्द।
भुजपाश में जकड़े
तकिए पर
ठुड्डी टिकाकर
मुस्कुराने लगते हैं मेरे होंठ!
और पलकों के भीतर
इतराने लगती हो तुम!
© चिराग़ जैन
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