हर बार ढूंढ़ लाती है
कोई न कोई बहाना
इनकार के लिए।
वही पुरानी बातें
वही पुराने बहाने
वही पुराने हाव-भाव
वही पुराने तौर
और तो और
झेंप, शर्म
और आँखें चुराना भी
जस का तस।
...ये सब तो मैं
फिल्मों में भी
देख चुका हूँ
सैंकड़ों बार।
इतनी बड़ी हो गई
इत्ती-सी बात समझ नहीं आती!
"अरे यार!
मैं प्यार करता हूँ तुझसे
...प्यार।"
मैं प्यार करता हूँ तुझसे
...प्यार।"
© चिराग़ जैन
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