Wednesday, December 28, 2011

परदेसी जीवन

1
ये है हासिल विदेश जाने का
ध्यान रखता हूं दाने-दाने का
कौन मुझको दुलारता आकर
फायदा क्या था कुलबुलाने का

2
जाने क्या बन के रह गया हूँ मैं
ध्यान रखता हूँ दाने-दाने का
घर कहीं, मैं कहीं, सुक़ून कहीं
ये है हासिल विदेश जाने का

© चिराग़ जैन

No comments:

Post a Comment