प्रश्न ये उठा है कि सीएजी क्या केवल ऑडिटर ही है? प्रश्न सुनकर देश भर में हंगामा खड़ा हो गया। कांग्रेस विनोद राय के विरोध में बयान देने लगी और विपक्ष कांग्रेस के विरोध में। सूचना प्रसारण मंत्री ने राय साहब की राय सुनकर अपनी राय दी। उन्होंने कहा कि आप विदेश में जाकर ऐसी बात मत कहिये। ऐसा लगा कि वे कह रहे हों कि चूंकि आप सरकारी आदमी हैं, इसलिये विदेश में जाकर सरकार को चोर मत कहो। यदि ऐसा कहना बहुत आवश्यक हो तो दिल्ली आकर कहो, मुम्बई में कहो, गोआ में कहो ...पूरा देश पड़ा है। यहाँ हमें कोई चोर कहे तो चलेगा, लेकिन विदेश में ऐसा कहना बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
उधर दिग्विजय जी ने विनोद राय साहब से उल्टा सवाल कर लिया- ‘अरे भाई! तुम ऑडिटर हो तो ऑडिट ही करोगे, और क्या प्राइम मिनिस्टर बनोगे?’ अरे बाप रे! ये क्या कह बैठे दिग्विजय जी। प्राइम मिनिस्टर बनने के लिये तो चुप रहना होता है, बोलने वाला आदमी प्राइम मिनिस्टर कैसे बन सकता है।
बहरहाल, मुझे लगता है कि राय साहब के सवाल को ये देश समझ ही नहीं पाया। वे शायद पूछ रहे हों कि इस देश में जिसको प्रधानमंत्री बनाया जाता है, वो केंद्र से देश को खाना शुरू करता है। जिसको कॉमनवेल्थ की ज़िम्मेदारी सौंपी जाती है, वो खेल के बहाने खाता है। जो जहाँ का ज़िम्मेदार है वो वहाँ ज़िम्मेदारी से सफ़ाई कर रहा है। कोयला मंत्री कोयला साफ़ कर गए, कानून मंत्री कानून चाट गये। एचआरडी वाले जनाब यूनिवर्सिटी की खा रहे हैं। जिसको जो स्थान दिया गया है, वो उस स्थान को चाटने में लगा है। जिसको चाटने के लिये कोई उपयुक्त स्थान नहीं दिया गया है वो लोगों के तलवे चाट रहा है।
ऐसे में बेचारे सीएजी क्या यही देखते रहेंगे कि किसने कैसे, कितना और क्या चाटा? क्या उनके भाग्य में चाटने का मौक़ा कभी नहीं आयेगा। वे दरअस्ल यही पूछना चाह रहे हैं कि क्या सीएजी का काम ‘केवल’ ऑडिट करना है?
सरकार को चाहिये कि उनकी उम्र का लिहाज करते हुए उनके लिये भी कोई स्थान निश्चित करे, जहाँ वे जम कर चाट सकें। ऑडिट-वॉडिट का क्या है, वो तो हमेशा ही फ़ाइलों में धूल चाटता रहेगा।
© चिराग़ जैन
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