Tuesday, February 26, 2013

बजट का मौसम

बजट का मौसम आ गया है। बजट एक वार्षिक कार्यक्रम है, वार्षिक इसलिये कि यह हर वर्ष बनाया जाता है। और कार्यक्रम इसलिये कि इसके सभी कार्य एक क्रम में होते हैं। देश में एक रेलमंत्री होता है, जो मंत्री बनने के बाद रेल से यात्रा करना अमूमन छोड़ देता है, इसलिये जब कभी वह रेल से सफ़र करता है तो उसकी तस्वीर अख़बार में प्रकाशित की जाती है। अक्सर यह तस्वीर रेल से उतरते हुए खींची जाती है। इस तस्वीर को देखकर देश समझ लेता है कि जब वे रेल से उतर रहे हैं तो रेल में चढ़े भी ज़रूर होंगे। हालाँकि चढ़ने के लिये उतरना और उतरने के लिये चढ़ना कतई ज़रूरी नहीं है। जैसे रेल के किराये। इनका उतरते हुए चित्र कभी नहीं खींचा गया।

ख़ैर, हम बजट के कार्य के क्रम की बात के सफ़र पर थे, लेकिन बीच में जं़ंजीर खींच कर फालतू जंक्शन पर टहलने लग गए थे। आइये वापस ट्रेन में सवार होते हैं। तो जी एक रेलमंत्री नाम का आदमी देश में होता है, वो आम बजट से पहले रेल का ख़ास बजट लेकर संसद नामक स्थान पर जाता है। यह ठीक ऐसा होता है जैसे मिनिस्टर की मर्सिडीज़ के आगे बुलैरो में सिक्योरिटी वाले चलते हैं, मरेंगे तो वो मरेंगे और वित्तमंत्री नामक मर्सिडीज़ बच जाएगी। 
जब ये रेलमंत्री नाम का व्यक्ति रेल बजट नाम का एक दस्तावेज़ लेकर संसद नामक स्थान पर जैसे ही पहुँचता है तो संसद में कार्रवाई नामक कोई चीज़ शुरू हो जाती है। इस कार्रवाई नामक चीज़ को सुचारु रूप से चलाने के लिये ज़रूरी होता है कि रेलमंत्री धीमे स्वर में बजट बोलना शुरू करते रहें, पक्ष वाले लोग मुस्कुराते हुए बैठे रहें, विपक्ष वाले विरोध करते रहें और लगे हाथ संसद के फ़र्नीचर की गुणवत्ता भी ठोक-बजा कर परखते रहें। अध्यक्ष शोर मचाने वालों को मुस्कुराते हुए डाँटते रहें और विपक्ष वाले मुस्कुराते हुए डँटते रहें।

दिन भर में कई बार इस क्रिया को दोहराने के बाद जब विपक्ष इस बात से आश्वस्त हो जाता है कि अंग्रेजों के ज़माने में भी फ़र्नीचर की क्वालिटी को लेकर कोई समझौता नहीं किया जाता था, और अध्यक्ष इस बात से आश्वस्त हो जाते हैं कि उनके जुमलों का समुचित रियाज़ द्रुतविलंबित से तीव्र तक हर प्रकार से हो चुका है तब सब मुस्कुराते हुए सदन से बाहर आ जाते हैं और बजट नामक मसौदा पास हो चुका होता है। 

इसके बाद विपक्ष क्रम से इसको जन-विरोधी बजट बताते हुए सरकार को धिक्कारता है, सरकार विपक्ष की हरक़त को नासमझी बताते हुए विपक्ष को फटकारती है। मीडिया रात के प्राइम टाइम में वेल्ले लोगों के साथ बैठ कर बजट पर चर्चा करता है, जिसका अमूमन यही परिणाम निकलता है कि कोई परिणाम नहीं निकलता। 

इस बार रेलमंत्री ने किराए नहीं बढ़ाए, क्योंकि किराए तो बजट से पहले ही बढ़ा दिए थे, लेकिन सरचार्ज बढ़ा दिए, क्योंकि सरचार्ज बजट से पहले नहीं बढ़ाए गए थे। रेलमंत्री ने फ़्यूल चार्ज बढ़ा दिया है क्योंकि डीजल महंगा हो रहा है। अब वित्तमंत्री डीजल के रेट बढ़ा देंगे क्योंकि रेल का किराया महंगा हो रहा है। जनता एक बार वित्तमंत्री की ओर देखती है, फिर रेलमंत्री की ओर। बार बार ऐसा करने के कारण जनता की गर्दन दर्द करने लगती है और उसमें झटका आ जाता है। जनता बजट का पंगा छोड़ कर बाम ढूंढने चली जाती है। बाम वाला बताता है कि वित्तमंत्री ने बजट में जिन चीज़ों के दाम बढ़ाए हैं, उनमें बाम भी शामिल है। सुनकर जनता बिना बाम लगाए योगा करने लगती है। योगा करते देख उसको बाबा रामदेव पकड़ लेते हैं। वहाँ से भागती जनता छुपती फिरती है, क्योंकि इस देश की जनता को बोलना तो सिखाया जाता है, लेकिन ये नहीं बताया जाता कि कब बोलना है। हम प्रतीक्षारत हैं कि कभी तो कोई बताएगा कि अब बोलो। इसी प्रतीक्षा में इसी प्रकार बजट बनते रहेंगे और हम बिना बाम लगाए चोरी-चोरी चुपके-चुपके योगा करके ख़ुश होते रहेंगे कि हमने बाबा रामदेव को बेवकूफ़ बना दिया।

© चिराग़ जैन

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