हर पेशे की अपनी-अपनी ड्यूटी है
हमें अक्सर
सामने वाले का पेशा
मज़ेदार लगता है
क्योंकि उसका सच
हमसे दूर होता है,
लेकिन हर पेशे में
कभी न कभी आदमी
बहुत मजबूर होता है।
जब कोई जज
किसी की ज़िन्दगी का
फैसला लिखता है
तो वो ऊपर से
बहुत आत्मविश्वासी दिखता है
लेकिन भीतर ही भीतर
उसका पसीना छूटता है
फैसले के बाद
कलम ही नहीं टूटती
फैसला लिखने वाला भी टूटता है
हर सर्जरी के बाद
जब तक मरीज़ का
जीवन संघर्ष चलता है
सर्जरी करने वाला डाॅक्टर भी
रात-रात भर करवटें बदलता है
सर्जरी से पहले
मरीज़ ही नहीं डरता
डाॅक्टर भी डरता है
और ज़रा-सी ग़लती होने पर
मरीज़ ही नहीं मरता
कुछ हिस्सों में
डाॅक्टर भी मरता है
सर्कस का जोकर
अपनी पीड़ा जता नहीं सकता
सीमा पर खड़ा जवान
अपनी समस्या बता नहीं सकता
फाँसी पर लटका इन्सान
जब धरती से दो फुट ऊपर
फड़फड़ाता होगा
तो एक बार तो
जल्लाद का कलेजा भी
हिल जाता होगा
लेकिन कोई फ़र्क नहीं पड़ता उनको
जो नफ़रत की फ़सल उगाते हैं
कलेजा नहीं थर्राता है उनका
जो नौजवानों को आतंकी बनाते हैं
दिल नहीं दहलता
लाशों के ढेर पर
राजनीति करने वालों का
दर्द नहीं दिखता है उन्हें
तड़प-तड़प कर
भूख से मरने वालों का
मुझे समझ नहीं आता है यार
कि हमनें क्यों उगाए हैं
नफ़रत के देवदार
दर्द, कराह और डर क्यों फैलाते हैं
हम सुख और चैन से रहना
क्यों नहीं सीख पाते हैं
मुझे यकीन है
कि जब तक आदमी में इंसान है
तब तक ज़िन्दगी बहुत आसान है
और जैसे ही हमारे भीतर का इंसान
मर जाता है
आदमी आसानी की सीमाओं से
आगे निकल जाता है
© चिराग़ जैन
सामने वाले का पेशा
मज़ेदार लगता है
क्योंकि उसका सच
हमसे दूर होता है,
लेकिन हर पेशे में
कभी न कभी आदमी
बहुत मजबूर होता है।
जब कोई जज
किसी की ज़िन्दगी का
फैसला लिखता है
तो वो ऊपर से
बहुत आत्मविश्वासी दिखता है
लेकिन भीतर ही भीतर
उसका पसीना छूटता है
फैसले के बाद
कलम ही नहीं टूटती
फैसला लिखने वाला भी टूटता है
हर सर्जरी के बाद
जब तक मरीज़ का
जीवन संघर्ष चलता है
सर्जरी करने वाला डाॅक्टर भी
रात-रात भर करवटें बदलता है
सर्जरी से पहले
मरीज़ ही नहीं डरता
डाॅक्टर भी डरता है
और ज़रा-सी ग़लती होने पर
मरीज़ ही नहीं मरता
कुछ हिस्सों में
डाॅक्टर भी मरता है
सर्कस का जोकर
अपनी पीड़ा जता नहीं सकता
सीमा पर खड़ा जवान
अपनी समस्या बता नहीं सकता
फाँसी पर लटका इन्सान
जब धरती से दो फुट ऊपर
फड़फड़ाता होगा
तो एक बार तो
जल्लाद का कलेजा भी
हिल जाता होगा
लेकिन कोई फ़र्क नहीं पड़ता उनको
जो नफ़रत की फ़सल उगाते हैं
कलेजा नहीं थर्राता है उनका
जो नौजवानों को आतंकी बनाते हैं
दिल नहीं दहलता
लाशों के ढेर पर
राजनीति करने वालों का
दर्द नहीं दिखता है उन्हें
तड़प-तड़प कर
भूख से मरने वालों का
मुझे समझ नहीं आता है यार
कि हमनें क्यों उगाए हैं
नफ़रत के देवदार
दर्द, कराह और डर क्यों फैलाते हैं
हम सुख और चैन से रहना
क्यों नहीं सीख पाते हैं
मुझे यकीन है
कि जब तक आदमी में इंसान है
तब तक ज़िन्दगी बहुत आसान है
और जैसे ही हमारे भीतर का इंसान
मर जाता है
आदमी आसानी की सीमाओं से
आगे निकल जाता है
© चिराग़ जैन
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