बीवी लड़ने कू तैयार
कम्मो ने मुस्का कर देखा
बीवी हो गई ढोल
चार दिनां से बोल रही ना
हमसे मीठो बोल
कम्मो ही बढ़िया थी यार
कम्मो मिली मगर की हमने
एक न मन की बात
एक तरफ बीवी लतियाये
एक तरफ जज़्बात
फिर से जागा सोया प्यार
ऐसी मिली घड़ी भर कम्मो
खड़ी हो गई खाट
बीवी मुँह फेरे लेटी है
घर के रहे न घाट
हमपे पड़ी दुतरफ़ा मार
हाल चाल तक पूछ न पाए
मुफ्त हुए बदनाम
कम्मो छूटी, बीवी रूठी
माया मिली न राम
उल्टे गले पड़ गई राड़
कर-कर हार गए मनुहार
कम्मो मिल गई बीच बाज़ार
अब तो डाल दिए हथियार
कम्मो मिल गई बीच बाज़ार
© चिराग़ जैन
अब तो डाल दिए हथियार
कम्मो मिल गई बीच बाज़ार
© चिराग़ जैन
No comments:
Post a Comment