गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Tuesday, April 9, 2013
तुम हमेशा मुझे दोषी ठहराती हो कि मैं अपने रिश्तों में उम्मीदें बहुत रखता हूँ
लेकिन समझ नहीं पाता हूँ मैं कि उम्मीद के बिना निभ ही कैसे सकता है कोई रिश्ता
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