Tuesday, April 9, 2013

तुम हमेशा
मुझे दोषी ठहराती हो
कि मैं अपने रिश्तों में
उम्मीदें बहुत रखता हूँ

लेकिन समझ नहीं पाता हूँ मैं
कि उम्मीद के बिना
निभ ही कैसे सकता है
कोई रिश्ता

.....उम्मीद के बिना तो
दान तक नहीं दिया जाता!

© चिराग़ जैन

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