Saturday, May 11, 2013

रेशम है कविता

रेशम है कविता
झट से फिसल जाती है
उंगलियों को चूमती हुई।

थाम लेते हैं इसे
जीवन के
खुरदरे अनुभव।

दर्द रिसता तो होगा।
पीर बहती तो होगी।

कौन जाने
क्या ज़्यादा दुखदायी है
दर्द का रिसना
या रेशम का फिसलना?

...डर लगता है
गुलाबी छुअन से।

रेशम का कसता फंदा
सहला भर जाता है
खुरदरे अनुभवों को।

© चिराग़ जैन

No comments:

Post a Comment