आज
डिनर टेबल पर
गोल्डन एप्पल नहीं खाए
माँ ने।
बस कह भर दिया-
"मुझे ना अच्छे लगते सेब-पेब।"
और फिर
हम सब
चट कर गये
सारे सेब
हाथों-हाथ।
...रात में तकिये पर सिर टिकाए
छत पर चमकते रेडियम के सितारों में
अचानक उभरकर याद आई
माँ की बात-
"सुन रे!
सेब लिअइयो
भोत दिन हो गए सेब खाये!“
सम्पन्नता या विपन्नता से
कोई फ़र्क नहीं पड़ता
उसकी आदत पर
दूसरों को खिलाकर ही
ख़ुश होती है माँ।
✍️ चिराग़ जैन
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