Tuesday, November 19, 2013

जलन

बूंद बारिश की उसको छूती है
मन मेरा ज़ार-ज़ार जलता है
मैं उसे प्यार करूं तो बेहतर
और लोगों का प्यार खलता है

© चिराग़ जैन

Sunday, November 17, 2013

गीत विरह के

जाने क्या-क्या सह के लिक्खे
ये जो गीत विरह के लिक्खे
मेरा तो बस नाम लिखा है
तूने मुझमें रह के लिक्खे

© चिराग़ जैन

Saturday, November 9, 2013

हरसिंगार

तुमसे सिंचित कली
हौले-हौले खिली
चहकी ...महकी
इतराने लगी।
हवाओं में
बिखरने लगी उसकी ख़ुश्बू।

...अरे! 
तुम रूठ क्यों गए हरसिंगार?
काॅम्प्लेक्स में आ गए हो क्या?
बर्दाश्त न हुई
अपने जने की ख़ुश्बू?
भार लगने लगा
अपना ही अंश?

तुम्हारी तो कीर्ति ही बढ़ाता था!
वरना कौन देखता था तुम्हारी ओर?
तुमने उसे ही गिरा दिया
ज़मीन पर!

देखो कैसा बिछ गया है बेचारा!
अनवरत निहारता
तुम्हारी ओर।

तुम मुँह फेरे खड़े हो!
ठूँठ कहीं के!

© चिराग़ जैन

Tuesday, November 5, 2013

आग्रह

आग्रह एक जंक्शन है
यहाँ से संबंध
बदल सकता है गाड़ी...

घृणा के लिए भी
घनिष्ठता के लिए भी
विस्तार के लिए
घुटन के लिए भी...

हर जगह की गाड़ी है हुज़ूर
आपको कहाँ का
टिकट चाहिए?

© चिराग़ जैन