हौले-हौले खिली
चहकी ...महकी
इतराने लगी।
हवाओं में
बिखरने लगी उसकी ख़ुश्बू।
...अरे!
तुम रूठ क्यों गए हरसिंगार?
काॅम्प्लेक्स में आ गए हो क्या?
बर्दाश्त न हुई
अपने जने की ख़ुश्बू?
भार लगने लगा
अपना ही अंश?
तुम्हारी तो कीर्ति ही बढ़ाता था!
वरना कौन देखता था तुम्हारी ओर?
तुमने उसे ही गिरा दिया
ज़मीन पर!
देखो कैसा बिछ गया है बेचारा!
अनवरत निहारता
तुम्हारी ओर।
तुम मुँह फेरे खड़े हो!
ठूँठ कहीं के!
© चिराग़ जैन
काॅम्प्लेक्स में आ गए हो क्या?
बर्दाश्त न हुई
अपने जने की ख़ुश्बू?
भार लगने लगा
अपना ही अंश?
तुम्हारी तो कीर्ति ही बढ़ाता था!
वरना कौन देखता था तुम्हारी ओर?
तुमने उसे ही गिरा दिया
ज़मीन पर!
देखो कैसा बिछ गया है बेचारा!
अनवरत निहारता
तुम्हारी ओर।
तुम मुँह फेरे खड़े हो!
ठूँठ कहीं के!
© चिराग़ जैन
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