जब मन से निःसृत शब्दों का हर आभूषण बहुत खरा हो
अपनेपन का भाव किसी पल अंतस् में आकंठ भरा हो
जब दर्शन का दंभ भुला कर निश्छल स्रोता स्वयं झरा हो
या भौतिक सुख की दलदल में निस्पृहता का पल उभरा हो
उस पल चाहे पूजन लिख दूँ
चाहे प्रणय निवेदन लिख दूँ
जीवन की अभिलाषा लिख दूँ
दुःख के नाम दिलासा लिख दूँ
उस पल कंठ पुकारेगा तो ईश्वर को भी आना होगा
उस पल जो शब्दों में उतरेगा वो सच हो जाना होगा
जब मन के सोये नभमंडल में कविता हुंकार भरेगी
जब भावों की बिजली कवि के नयनों में टंकार करेगी
जब मति की सीमा मन के परकोटे तक विस्तार करेगी
जब शब्दों की देवी मेरे जीवन पर उपकार करेगी
उस पल सब कुछ अनुपम होगा
मन से मति का संगम होगा
जीवन पर अर्पित यम होगा
जितना भी होगा कम होगा
उस पल सब बंधन टूटेंगे, खण्डित ताना-बाना होगा
उस पल जो शब्दों में उतरेगा वो सच हो जाना होगा
© चिराग़ जैन
अपनेपन का भाव किसी पल अंतस् में आकंठ भरा हो
जब दर्शन का दंभ भुला कर निश्छल स्रोता स्वयं झरा हो
या भौतिक सुख की दलदल में निस्पृहता का पल उभरा हो
उस पल चाहे पूजन लिख दूँ
चाहे प्रणय निवेदन लिख दूँ
जीवन की अभिलाषा लिख दूँ
दुःख के नाम दिलासा लिख दूँ
उस पल कंठ पुकारेगा तो ईश्वर को भी आना होगा
उस पल जो शब्दों में उतरेगा वो सच हो जाना होगा
जब मन के सोये नभमंडल में कविता हुंकार भरेगी
जब भावों की बिजली कवि के नयनों में टंकार करेगी
जब मति की सीमा मन के परकोटे तक विस्तार करेगी
जब शब्दों की देवी मेरे जीवन पर उपकार करेगी
उस पल सब कुछ अनुपम होगा
मन से मति का संगम होगा
जीवन पर अर्पित यम होगा
जितना भी होगा कम होगा
उस पल सब बंधन टूटेंगे, खण्डित ताना-बाना होगा
उस पल जो शब्दों में उतरेगा वो सच हो जाना होगा
© चिराग़ जैन
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