बरवाला में आज हमला दिवस था। आश्रम पर हमला हुआ। बचाने आए भक्तों पर हमला हुआ। पकड़ने आए पुलिसवाले पिटे। देखने गए गांववाले पिटे। दिखाने गए मीडिया वालेपिटे। घुटने टूटे, कैमरे टूटे और टीआरपी के रिकॉर्ड भी। अदालत नाराज़ है किअदालत की तौहीन हुई। पुलिस नाराज़ है कि पुलिस की तौहीन हुई। मीडिया नाराज़है कि मीडिया की तौहीन हुई। भक्त नाराज़ हैं कि संत की तौहीन हुई।
पुलिस आई, पैरा मिलिट्री आई, प्राइवेट मिलिट्री आई। सारा दिन बरवाला में बम, लाठी, गोली चली, चैनल्स पर लाइव टेलीकास्ट चला, शाम कोसभी चैनल्स पर शब्दों का युद्ध हुआ।
किसी ने बताया कि बाबा कबीरपंथी है। ऐसा लगा कि दिन भर लोकतंत्र घायल होतारहा। दिन भर धर्म घायल होता रहा। लेकिन शाम को मीडिया की बहस में जब बाबाको कबीरपंथी बताया गया तो ऐसा लगा कि एक ही पल में कबीर लहूलुहान हो गए।आश्रम के भीतर से जितने पत्थर फेंके गए उनसे कबीर का अंग-अंग ज़ख़्मी हो गया।बरवाला की दिशा में कान लगाकर सुना तो लगा कोई कराह रहा है। उस कराह मेंएक टीस है, कोई बुदबुदाता जाता है-
कबिरा पिटा हिसार में, पूछ रहा है रोय
दो पार्टिन के बीच में, खींच लिया क्यों मोय
© चिराग़ जैन
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