गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Saturday, May 28, 2016
पैरा ग्लाइडिंग
मैं किसी आकाश के रोमांच की
बांहें पकड़ कर;
उस धरा द्वारा मुझे सौगात में सौंपे गए
अविरल सुरक्षा भाव का
अपमान कर आया;
जो कि मुझको हर दफ़ा
अस्थिर उड़ानों से
पुनः नीचे उतर आने पे
बढ़कर थाम लेती है।
वे उड़ानें
(मैं जिन्हें उन्माद में
ऊँचाइयों पर ठहर जाने का
तरीका मान बैठा हूं)
महज ज़िद पर उतर आए
किसी बालक की ऐसी कूद भर है
जो थका कर मौन करती है मुझे
क्योंकि अभी
धरती के आकर्षण की सीमा
लांघ जाने का
अतुल साहस नहीं है
मेरी बचकाना उड़ानों में।
© चिराग़ जैन
Thursday, May 26, 2016
ख़बर का असर
Saturday, May 21, 2016
पिताजी की भाषा की अलंकारिकता
Thursday, May 12, 2016
डिग्रियों का बोलबाला
Tuesday, May 10, 2016
सबूत मांगने पर केजरीवाल जी की आलोचना बिल्कुल नाजायज़ है। जनता को जानने का हक़ है कि हमारा शासन-प्रशासन कैसे काम करता है। सर्जीकल स्ट्राइक एक अंतर्राष्ट्रीय घटना है। मोदी जी, आपको अरविन्द जी से सीखना चाहिए। जिनकी पार्टी के नेता जनता का राशन कार्ड बनाने की भी वीडियो और फ़ोटो खुद तैयार करते हों उनको पाकिस्तान का राशन कार्ड बनते देखने की तलब हो तो इसमें ग़लत क्या है।
© चिराग़ जैन