Thursday, May 12, 2016

डिग्रियों का बोलबाला

देश में डिग्रियों का बोलबाला है। कोई प्रधानमंत्री से डिग्री मांग रहा है तो कोई डिग्री से प्रधानमंत्री। ऐसे में मैं स्पष्ट कर दूँ कि डिग्री देखने की ललक छोड़ कर काम की क्षमता पर ध्यान दो। 

प्रोडक्टिविटी और केपेसिटी हो तो डॉक्टरेट की डिग्रियाँ पांचवी फेल डिग्रीलेस को सलाम बजाती हैं। अंगूठा छाप मिनिस्टर हो गए और प्रशासनिक सेवा परीक्षा का अव्वल छात्र उनका सचिव। सर्वाधिक पढ़े लिखे प्रधानमंत्री का अध्यादेश एक मंदबुद्धि बालक फाड़ देता है और कोई कुछ नहीं कर पाता। 

दंतकथाओं पर विश्वास करें तो कालिदास से अधिक विद्वान् 'विलोम' भाग्यहीन रह गया और विद्योत्तमा का मूढ़ पति युग का महाकवि हो गया। राजनीति में कुछ ऐसे भी हैं जो अपनी असली डिग्री दिखा दें तो विश्वविद्यालय और शिक्षानीति दोनों की क्षमताएँ कठघरे में आ जाएंगी। 

जिन गुणों से व्यक्ति महान बनता है उनकी शिक्षा डिग्रियों में नहीं लिखी होती। विजय जी माल्या को कला की कक्षा में नहीं पढ़ाया गया था कि कन्याओं के कितने कपडे उतरवाकर गले में हाथ डालोगे तो फोटो अच्छी आएगी। न ही उन्हें विज्ञान के अध्यापक ने बताया था कि बैंकों के पैसे में विटामिन होते हैं। और तो और फिज़िकल एजुकेशन में भी उन्हें यह पाठ नहीं पढ़ाया गया था कि संकट की स्थिति में किस देश की ओर दौड़ना उचित होगा। ...फिर भी माल्या साहब महान बने कि नहीं। 

श्री मान केजरीवाल जी से ही पूछ लेते हैं कि उन्होंने अन्ना जी को अधन्ना बनाकर खुद हज़ारी हो जाने का कौशल किस स्कूल में सीखा था? अपने गले में मफलर बाँध कर भाजपा और कांग्रेस का गला घोंटने का पाठ NCERT की किस पुस्तक में शामिल था। अपनी कमीज़ बाहर निकाल कर बाकियों को विधानसभा से बाहर निकालना किस अभ्यास पुस्तिका में लिखा था। फिर भी केजरीवाल जी महान बने कि नहीं।

मोदी जी की विश्वविद्यालय की डिग्री देख कर भी क्या कर लोगे। जो पढ़कर डिग्री हासिल की वो उन्होंने कभी किया ही नहीं। बचपन से पढ़ते आए थे कि बड़े-बुज़ुर्गों का सम्मान करो, उन्होंने किया क्या? बचपन से पढ़ते आए कि 'अपना घर छोड़ कहीं और न जाया जाए'; वे माने क्या? बचपन से पढ़ते आए कि 'तोल-मोल कर बोल' ...किस किस चीज़ की डिग्री देखोगे? 

सन्नी द्योल ने दामिनी फ़िल्म में एक डायलॉग बोला था। उसी अंदाज़ में समझ लो - "सिसोदिया समझा इसे, काग़ज़ पर छपी हुई ये डिग्रियाँ जमुनापार में बहुत मिलती हैं, लेकिन इनसे कुर्सी पाने का जो मुक़द्दर है ना, वो दुनिया के किसी स्कूल में नहीं मिलता; नेहरू-गांधी खानदान उसे लेकर पैदा होता है। पुलिस की थर्ड डिग्री जब दिखती है ना, तो आदमी बोलता नाहीं ...बोल जाता है।" 

© चिराग़ जैन

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