Saturday, April 8, 2017

आकांक्षा

मैं तुम्हारी आँख में कुछ स्वप्न अपने आँज आया
तुम मेरे सपनों को अपने आँसुओं में मत बहाना

जब तुम्हें आभास हो, गंतव्य दुर्गम हो रहा है
या सफलता के प्रयासों के जकड़ ले पाँव कोई
राह का मौसम गुलाबी हो करे कर्तव्य विस्मृत
या तुम्हें आकृष्ट कर बैठे, मनोहर गाँव कोई
तब घड़ी भर देखना दर्पण में अपनी पुतलियों को
तब घड़ी भर इस अनोखे स्वप्न से आँखें मिलाना

एक दिन तुमको समूची साधना मिथ्या लगेगी
एक दिन उलझाएगी तुमको इसी पथ की पहेली
एक दिन थककर तुम्हारे पाँव भी दुखने लगेंगे
एक दिन तुम भी चलोगी साधना-पथ पर अकेली
बस उसी दिन जान लेना, है बहुत नज़दीक मंज़िल
बस उसी दिन और भी जीवट जुटाकर पग बढ़ाना

मन्त्र हैं निष्प्राण उनमें साधना के प्राण भर दो
शब्द को अनुभूतियों का स्पर्श दो, वह जी उठेगा
जिस समंदर ने तुम्हारे वक़्त की नैया डुबोई
चंद्रमा की ओर बढ़ता ज्वार उससे ही उठेगा
जब नई आभा छलक आए सफलता के नयन में
तब नयन की कोर पर उसको सजाकर मुस्कुराना

© चिराग़ जैन

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