गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Tuesday, April 18, 2017
सैनिक का दावा
ये शेरों की दहाड़ें झूठ हैं, कोरा दिखावा है हमें अपनों से ख़तरा है, ये हर सैनिक का दावा है बहुत लाचार हैं; पैरों में बेड़ी है सियासत की वगरना हाथ में बंदूक है, सीने में लावा है
No comments:
Post a Comment