Wednesday, April 26, 2017

शोर-शराबा क्यों है?

रे सागर! सच-सच बतला दे
इतना शोर शराबा क्यों है
भीतर तो चुप-चुप रहता है
तट पर मार दिखावा क्यों है

मीठी नदिया के पानी को, तू है इतना प्यारा सागर
वो तो तुझमें डूब गई पर, तू ख़ारा का ख़ारा सागर
इन लहरों में इक नदिया की कलकल का परछावा क्यों है

दिन भर सूरज की गर्मी का चुप-चुप तूने भार उठाया
चंदा शीतल था तो तूने कितना भीषण ज्वार उठाया
उद्दण्डों से भय कैसा है, भद्रजनों पर धावा क्यों है

तू जग में सर्वाधिक विस्तृत, तू जग में सर्वाधिक गहरा
तू ही दुनिया भर के मोती-मूंगों का भी स्वामी ठहरा
इतना सब वैभव पाकर भी, सबसे अधिक अभागा क्यों है

© चिराग़ जैन

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