Friday, November 2, 2018

वो निर्णय किस काम का

सब बातों पर ध्यान न देना 
हर निंदा को कान न देना 
इक पल की इच्छा पूरी कर 
इक युग को अपमान न देना 
धोबी ने कब आकर पूछा हाल अकेले राम का 
जो जीवन भर की पीड़ा दे, वो निर्णय किस काम का 

जग की निंदा से चिंतित हो, कोख जने को तज दोगे क्या 
रश्मिरथी के उज्ज्वल पथ पर, मन भर पीड़ा रच दोगे क्या 
वह पग-पग अपमान सहेगा जीवन भर चुपचाप दहेगा 
किसके पापों से पीड़ित है इस सच से अनजान रहेगा 
कुन्ती का मन दुःख झेलेगा, इस भीषण संग्राम का 
जो जीवन भर की पीड़ा दे, वो निर्णय किस काम का 

माता का आदेश सुना तो भिक्षा सम बाँटी पांचाली 
अपनी चूक निभाने भर को, उस बेचारी को दी गाली 
एक कथन को नहीं सुधारा इक नारी के मन को मारा 
फिर उसका भी बीच सभा में वेश्या कहकर नाम पुकारा 
इस पल में ही बीज पड़ा था, कुल के पूर्णविराम का 
जो जीवन भर की पीड़ा दे, वो निर्णय किस काम का 

कैकयी की हठ पूरी करके, ख़ुशियों को जंगल मत भेजो 
झूठी शान दिखाना छोड़ो, जीवन भर का हर्ष सहेजो 
कोई लौटे नाक कटाकर कोई मारे ध्यान बँटाकर 
पूरा कुल अर्पण मत करना इक पल का आवेश दिखाकर 
शूर्पनखा से कारण पूछो, लंका के परिणाम का 
जो जीवन भर की पीड़ा दे, वो निर्णय किस काम का 

© चिराग़ जैन

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