उसकी आँखों के आँसू से तुमने कैसे आँख चुरा ली
जिसकी हर इच्छा का बिरवा, तुमने साँसों से पोसा था
उसकी चाहत के झूले से कैसे तुमने शाख़ चुरा ली
सिसकी भरने से पहले ही, तुम दुलराने आ जाते थे
दुनिया से मन ऊब न जाए, प्यार जताने आ जाते थे
एकाकीपन की सर्दी से जब अंतर्मन काँप रहा था
तुमने भी उस ही मौसम में रिश्तों की पोशाक चुरा ली
उम्मीदों का साथ न हो तो, साँसें कुम्हलाने लगती हैं
मन में कोई आस न हो तो, आँखें पथराने लगती हैं
तुमसे ही उम्मीद बची है, उसको मत मर जाने देना
दुनिया ने बाक़ी उम्मीदें, सीना करके चाक चुरा लीं
✍️ चिराग़ जैन
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