1. लड़की शाॅप लिफ्टिंग में पकड़ी गई और जेल गई। बाप जमानत करा कर लाया और गुस्से में बोला- ‘आज से इसका कॉलेज बन्द। कोई लड़का देखकर इसकी शादी करा दो।’
2. लड़की अपनी ही सगाई में फोटोग्राफर के साथ सेक्स करती पकड़ी गई। लड़की की माँ ने देख लिया और उस पर लिपिस्टिक-पाउडर की लीपापोती करके उसे सगाई में बैठा दिया।
3. लड़की अपनी माँ से पूछती है कि मेरी शादी की इतनी क्या जल्दी है? लड़की की माँ बोलती है - ‘मुझे तुझ पर भरोसा नहीं है। तुझे वक्त दिया तो फिर से तू किसी के साथ मुँह काला कर लेगी।’
ये ऊपर की तीनों लड़कियाँ जिस भी लड़के से ब्याह करेंगी उसके प्रति समाज और कानून की क्या जिम्मेदारी है? जब आपकी पाली हुई लड़की आपके हिसाब से ‘बिगड़ चुकी है’ तब आप किसी के गले से फटे ढोल की तरह लटका कर अपनी इज्जत और आपकी जिम्मेदारियों की लीपापोती कर लेते हैं। आपके मापदंडों पर जो लड़की ‘बिगड़ी हुई लड़की’ बन चुकी है उसे किसी निर्दोष के पल्ले बांधते समय क्या आप उसकी खामियों का जिक्र करते हैं?
और इतने पर भी तुर्रा ये कि शादी के बाद जब उस लड़की की उन्हीं हरकतों से परेशान होकर वह लड़का शिकायत करने पहुँचता है तो वही माँ-बाप, वही समाज और वही कानून उल्टे लड़के को ही आँखें दिखाने लगते हैं।
लड़की के माँ-बाप उसकी हरकतों से दुखी होकर उसका कॉलेज बंद करें तो यह ‘उत्तरदायित्व का निर्वाह’ है लेकिन उसी लड़की का पति वैसी ही हरकतों की वजह से उसे घर से बाहर निकलने से मना कर तो यह ‘क्रूरता’ है।
लड़की की माँ उसे किसी लड़के से मिलने से रोके तो यह माँ की बेटी के प्रति चिंता है। लेकिन उसी लड़की का पति उसी लड़के से मिलने से उसे रोके तो वह लड़का ‘रुढ़िवादी और गँवार’ है।
समाज का यह दोहरा रवैया न्याय की अवधारणा को तार-तार करता है। माँओं द्वारा लीप-पोत कर विदा की हुई लड़कियाँ जब ससुराल पहुँच कर मेकअप उतारती हैं तो उनके अतीत के चेहरे पर पड़े हुए नील उनके वैवाहिक जीवन में अंधियारे की ऐसी लकीर खींच देते हैं जिसके साये में सैंकड़ों नौजवानों का जीवन अवसाद के संत्रास को झेलता हुआ समाप्त हो जाता है।
‘लिपिस्टिक अंडर माई बुरका’ का फिल्मकार महिलाओं की आजादी के नाम पर ‘बोल्डनेस’ का जो हवाई झरोखा खींचना चाहता है उसमें से विवाह संबंधों के इस कड़वे सच का लकवाग्रस्त चेहरा साफ दिखाई देता है।
© चिराग़ जैन
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