पलकों पे आँसू के निशान, देखे संसद को
अपनी सियासत तुम ही संभालो
पैरों में चुभा बस काँटा निकालो
रूठ गए हैं जो, उनको मना लो
इनसे न बनो अनजान, देखे संसद को
अपनों से अपनों की कैसी लड़ाई
जनता है छोटी, तुम हो बड़ भाई
उनकी अड़ाई, तुम्हारी कड़ाई
ऐसे न होगा समाधान, देखे संसद को
सही और ग़लत के न पेंच लड़ाओ
घर की लगी है जो उसको बुझाओ
वो रूठे हैं तो तुम मान जाओ
किसी का न होगा नुक़सान, देखे संसद को
© चिराग़ जैन
No comments:
Post a Comment