विचारों के भाजी बाज़ार से दूर,
मस्तिष्क के
पिछवाड़े वाले तहख़ाने में
भरे पड़े हैं
ऐसे हज़ारों बिम्ब
जिन्हें आँखों ने
चित्त के शिकंजे से बचाकर
यहाँ छिपा दिया था।
जब कभी
सहजता की सवारी करके
प्रिविष्ट हुआ हूँ
इस तहख़ाने में
बस तभी
बटोर लाया हूँ
...ढेर सारे बिम्ब
...ढेर सारी कविताएँ!
आपके भीतर भी होगा
ऐसा ही इक तहख़ाना;
बस इसमें
कभी मुखौटा लगाकर
मत जाना!
© चिराग़ जैन
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