Thursday, May 6, 2021

नया धर्म : सेंड टू ऑल

आज मुझे एहसास हुआ कि हमारे देश में कोई आम आदमी है ही नहीं। हर नागरिक के दुनिया के बड़े से बड़े आदमी से डायरेक्ट कॉन्टेक्ट हैं। और सबको ही कोई कल्पवृक्ष टाइप की सिद्धि प्राप्त है। यही कारण है कि जब उन्हें पैनडेमिक से संबंधित कोई पुख्ता जानकारी चाहिए होती है तो उनके व्हाट्सएप पर सीधे डब्ल्यूएचओ से मेसेज प्रकट हो जाता है। वे उस मेसेज को पढ़ते हैं और तुरंत अपने मोबाइल से जुड़े एक-एक जनसामान्य को फॉरवर्ड करके उन्हें अज्ञान के अंधेरे से बाहर निकाल लेते हैं।
कुछ तो इतने परोपकारी होते हैं कि स्वयं पूरा मेसेज पढ़ने में समय नष्ट करने की बजाय, सीधे औरों तक भेजकर परोपकार में जुट जाते हैं।
कई बार ऐसा लगता है कि अमरीका, जर्मनी, कनाडा, चीन और ब्रिटेन जैसे देशों के साथ-साथ यूएनओ और नासा जैसी संस्थाएं रोज़ सुबह अपनी दुकान का शटर उठाते ही भगवान के आगे अगरबत्ती जलाने से पहले यह चैक करती होंगी कि आज उनके आका को कौन-सी इन्फॉर्मेशन चाहिए। और फिर जो बिडेन से लेकर बोज़कर तक अपनी लुंगी फोल्ड करके इन्फॉर्मेशन के पुलाव बनाने पर जुट जाते हैं और एक-एक कर सारी इन्फॉर्मेशन इस देश के व्हाट्सएप यूज़र्स के पास पहुँचा देते हैं।
‘भारत सरकार में अंदरख़ाने क्या चल रहा है’ से लेकर ‘शनि के पास से गुज़रते हुए जुपिटर क्या कहेगा’; तक की हर छोटी-बड़ी सूचना इनके पास उपलब्ध होती है। चीन और पाकिस्तान जैसे देशों में भारत को लेकर क्या रणनीति बनाई जा रही है, पाकिस्तान और चीन गली के नुक्कड़ पर खड़े होकर भारत के खि़लाफ़ क्या खुसर-फुसर कर रहे हैं; यह चौबीस घण्टे इनके ट्रांसमीटर पर रेकॉर्ड होता रहता है। कई बार तो शक होता है कि पाकिस्तान और चीन नेकर पहनकर दो उंगली आगे करके पहले इनसे परमिशन मांगने तो नहीं आते कि- ‘मैडम जी, क्या हम भारत के खि़लाफ़ कानाफूसी कर सकते हैं?’
पूरी दुनिया के देशों की विदेश नीति इनके लिए बच्चों के घर-घर खेलने से ज़्यादा कुछ नहीं है। अमरीका ने पाकिस्तान को कह दिया है कि तू चीन से कुट्टा हो जा तो मैं तुझे इंग्लैंड से अब्बा करवा दूंगा। समझ ही नहीं आता कि ये देश हैं या नोबिता और शिनचैन!
भारत सरकार का सूचना प्रसारण मंत्रालय, बीबीसी, एएनआई और इतने सारे मीडिया संस्थानों की टुच्ची इन्फॉर्मेशन इन लोगों की पर्सनेलिटी को सूट नहीं करती। आत्मनिर्भरता इनके ख़ून में शामिल है इसलिए अमरीका, जापान, चीन, नासा जैसे इनके योग्य मजदूर इन्हें कोई सूचना उपलब्ध नहीं करा पाते तो ये पुरातन भारतीय पद्धति का प्रयोग करते हुए गहरे ध्यान में उतरकर स्वयं सूचनाएं निर्मित कर लेते हैं। इस प्रक्रिया में प्राप्त हुई सूचनाओं में पूरा ब्रह्मांड और स्वयं ईश्वर भी इनकी दृष्टि से अछूता नहीं रहता।
माता वैष्णोदेवी के दरबार से चला मेसेज फॉरवर्ड करने पर कितने लोगों की लॉटरी खुल गयी इसका पूरा हिसाब इनके लेजर में उपलब्ध होता है। यह और बात है कि भारत में लॉटरी बैन है।
ऐसे ही गहरे ध्यान में उतरकर प्राप्त हुई सूचना के दम पर उत्तर प्रदेश में एक बाबा ने भारत सरकार के पुरातत्व विभाग समेत पूरे देश को सोने का भण्डार खोजने के काम में लगा दिया था। और अंत में सोना न मिलने पर वे बाबा, पुरातत्व विभाग और हम सब बेशर्मी के साथ अन्य फर्स्ट हैंड इंफोर्मेशन्स फारवर्ड करने में जुट गए, क्योंकि ज़मीर, आत्मा और शर्म जैसे शब्द इन सूचनाओं के वेग में कहीं ग़ुम हो चुके हैं।

© चिराग़ जैन

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