Tuesday, March 15, 2022

रंग में भंग

होली के हुड़दंग में
रंग में भंग पड़ गयी
इधर ठण्डाई गले से नीचे उतरी
उधर भांग सिर पर चढ़ गई

भोले की बूटी ने ऐसा झुमाया
कि हाथ को लात
और सिर को पैर समझ बैठा
चूहा भी ख़ुद को शेर समझ बैठा

नशे की झोंक में लफड़ा बड़ा हो गया
पत्नी के सामने तनकर खड़ा हो गया
पत्नी ने आँखें दिखाई
तो डरने की बजाय अकड़ने लगा भाई
तू क्या समझती है
तेरी आँखों से डर जाऊंगा
तू जो कहेगी, वो कर जाऊंगा
ख़ुद को बड़ी होशियार समझती है
मुझे अनाड़ी, मूरख, गँवार समझती है
अरे, तेरी बेवकूफियों को हज़ारों बार इग्नोर कर चुका हूँ
क्योंकि तुझसे शादी करके
सबसे बड़ी बेवकूफी तो मैं ख़ुद कर चुका हूँ

जब नशा उतरा
तो उसकी दुनिया का पूरा भूगोल डोल गया
लेकिन मन ही मन ख़ुश था
कि नशे में ही सही
एक बार तो पत्नी से सच बोल गया।

✍️ चिराग़ जैन

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