ख़ुश होते तो आँख चमकती
मन हँसता तो देह दमकती
डर लगता तो दिल की धड़कन
ख़ुद चेहरे तक आन धमकती
क्या होंठों के खिंच जाने को हम सचमुच मुस्कान कहेंगे
क्या आँखों के मुंदने को ही जीवन का अवसान कहेंगे
हाथ-पैर हिलते-डुलते हैं, पर मन में उत्साह नहीं है
साँसें आती हैं, जाती हैं पर जीने की चाह नहीं है
कैसी है ये हालत समझो
इसकी आज हक़ीक़त समझो
ये काया की आदत भर है
इसको ही जीवन मत समझो
बिन छत की दीवारें हैं ये, कैसे इन्हें मकान कहेंगे
क्या आँखों के मुंदने को ही जीवन का अवसान कहेंगे
शब्द उगलना नित्य क्रिया है, मन कह पाना स्वर्गिक सुख है
कानों में जो शोर भरा है, उसमें केवल सत्य प्रमुख है
मेघ घिरे हैं, वृष्टि नदारद
आँख खुली हैं दृष्टि नदारद
जिसके भीतर मन टूटा हो
उसके हित यह सृष्टि नदारद
दो हाथों से छूने को ही क्या सच का अनुमान कहेंगे
क्या होंठों के खिंच जाने को हम सचमुच मुस्कान कहेंगे
मुस्काना उसको कहते हैं, जिससे तन-मन खिल-खिल जाए
जीवन, जिसमें मन दीपक हो, रोम-रोम तक झिलमिल आए
कुंजगली अभिराम नहीं है
गोकुल है, घनश्याम नहीं है
उन महलों में सन्नाटा है
जिन महलों में राम नहीं है
जिसमें कोरी भौतिकता हो, उसको कब तक ज्ञान कहेंगे
क्या होंठों के खिंच जाने को हम सचमुच मुस्कान कहेंगे
© चिराग़ जैन
No comments:
Post a Comment