Monday, April 1, 2024

गीत की चेतावनी

आज फिर एकांत की उंगली पकड़कर 
सोच को अपनत्व की बाँहों में भरकर 
कोई बोला प्राण का संगीत हूँ मैं 
ठीक से पहचानिए ना, गीत हूँ मैं 

अक्षरों के वस्त्र ओढ़े हैं बदन पर 
भंगिमा में भाव का विस्तार देखो 
शब्द के आभूषणों से हूँ अलंकृत 
नयन में रस की अलौकिक धार देखो 
मैं सुदामा की झिझकती पोटली हूँ 
कृष्ण बनकर भोगिये, नवनीत हूँ मैं 
ठीक से पहचानिए ना, गीत हूँ मैं 

अन्तरे तुमसे अभी रूठे हुए हैं 
त्रस्त हैं मुखड़े तुम्हारी बेरुख़ी से 
पंक्तियाँ करके प्रतीक्षा थक चुकी हैं 
कथ्य गुमसुम मौन फिरते हैं दुःखी से 
आओ, इन सबकी उदासी दूर कर दो 
मर न जाए मन, बहुत भयभीत हूँ मैं 
ठीक से पहचानिए ना, गीत हूँ मैं 

व्यस्तता की ओट में भूले सृजन को
जन्म के सौभाग्य का अपमान है ये 
कंकड़ों की चाह में मोती न छोड़ो
शौक मत समझो इसे, वरदान है ये 
ताक पर रख दो जगत् के मानकों को 
हार के उस पार हासिल जीत हूँ मैं 
ठीक से पहचानिए ना, गीत हूँ मैं 

छोड़कर वर्चस्व की हर होड़, आओ 
जान लो, अस्तित्व मुझसे ही बचेगा 
जीत हो या हार हो या हो उदासी 
देखना एकांत मुझको ही रचेगा
लोग सुख में साथ, दुःख में दूर होंगे 
इस प्रथा से एकदम विपरीत हूँ मैं 
ठीक से पहचानिए ना, गीत हूँ मैं 

एक दिन जब चेतना भी गौण होगी 
तब तुम्हारा चिह्न बनकर मैं रहूंगा 
कण्ठ, स्वर, वाणी, अधर सब लुप्त होंगे 
तब तुम्हारी बात जग से मैं कहूंगा 
सौंपकर अपना समूचा सत्य मुझको 
पाइए अमरत्व, कालातीत हूँ मैं 
ठीक से पहचानिए ना, गीत हूँ मैं 

~ चिराग़ जैन 

No comments:

Post a Comment